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Saturday, April 12, 2025

अधर्म, अत्याचार और अहंकार के प्रतीक कंस का अंत कर श्रीकृष्ण ने धर्म की पुन: स्थापना की : पं.दिनेश भारद्वाज

श्रीमद्भागवत कथा में रुक्मिणी विवाह, कंस वध एवं उद्धव प्रसंग ने भक्ति का किया संचार


शिवपुरी।
फतेहपुर चौराहा में विगत कुछ दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत कथा अब अपने अंतिम चरण की ओर अग्रसर है। इस आध्यात्मिक महोत्सव की कथा 6 अप्रैल से 12 अप्रैल तक श्रद्धेय पंडित दिनेशचंद्र भारद्वाज जी महाराज के दिव्य वाणी द्वारा प्रवाहित की जा रही है। आज के विशेष दिन पर श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह, कंस वध, एवं उद्धव प्रसंग जैसे गहन और हृदयस्पर्शी प्रसंगों की झलकियाँ प्रस्तुत की गईं, जिनसे संपूर्ण वातावरण भक्ति और भावनाओं की सरिता में बहता चला गया।

कथा के माध्यम से जब रुक्मिणी विवाह का प्रसंग आया, तो श्रद्धालुजन भावविभोर हो उठे। महाराज जी ने रुक्मिणी जी की प्रीति, उनका आत्मसमर्पण, और श्रीकृष्ण द्वारा रथ लेकर उनका अपहरण कर ले जाना — इस पूरे प्रसंग को ऐसे जीवंत स्वर में प्रस्तुत किया, मानो स्वयं दृश्य सजीव होकर श्रोताओं के अंतर्मन में उतर गया हो। कंस वध के प्रसंग में महाराज जी ने बताया कि किस प्रकार अधर्म, अत्याचार और अहंकार के प्रतीक कंस का अंत कर श्रीकृष्ण ने धर्म की पुन: स्थापना की। यह प्रसंग केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, अपितु यह भीतरी कंस — हमारे भीतर के अहंकार, क्रोध, और असत्य को समाप्त करने की प्रेरणा भी देता है।

उद्धव प्रसंग कथा का सबसे भावनात्मक हिस्सा रहा। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव को गोपियों के पास ज्ञान देने भेजा और गोपियों ने उत्तर दिया कि ज्ञान से प्रभु नहीं मिलते, प्रभु तो केवल प्रेम और भक्ति से मिलते है, तो वहाँ उपस्थित प्रत्येक हृदय ने उस पीड़ा, प्रेम और परम समर्पण को अनुभव किया। उद्धव स्वयं उस दिन गोपियों के चरणों में बैठकर शिष्य बन गए— और यही प्रसंग हमें यह सिखाता है कि जहाँ प्रेम है, वहाँ प्रश्न नहीं होते; वहाँ केवल समर्पण होता है।

इस भव्य आयोजन के मुख्य यजमान रहे –श्री श्यामलाल शर्मा जी,श्री सुरेंद्र शर्मा जी,श्रीमती रानी शर्मा जी,तथा समस्त डिघर्रा बंधु परिवार, जिन्होंने तन-मन-धन से कथा सेवा कर, केवल एक आयोजन नहीं बल्कि संपूर्ण क्षेत्र के लिए एक धार्मिक प्रेरणा प्रस्तुत की है। उनका सहयोग, समर्पण और सेवा-भावना इस यज्ञ की सफलता का मूल आधार रहे हैं। कथा का यह पावन मंच केवल शास्त्र श्रवण का अवसर नहीं, बल्कि यह एक आत्मा की पुकार और प्रभु से साक्षात्कार का माध्यम बन चुका है। श्रद्धालुजन दिन प्रतिदिन इस दिव्य कथा से अपने अंतर्मन को शुद्ध कर रहे हैं।

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