परिणय वाटिका में भगवान श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह की सजी झांकी, ढोल-ताशों के साथ मना विवाह महोत्सवशिवपुरी- जब जीवन में खुशी के क्षण आते है तो विवाह भी होने वाले दंपत्ति के लिए खुशी के अवसर लाता है इसलिए नहीं कि यह दो जीवनसाथियों का मिलन है बल्कि यह जीवन एक नए पथ पर आगे बढऩे वाला है, श्रीमद् भागवत कथा में भगवान की विभिन्न लीलाओं के साथ पति-पत्नि के जीवन को सार्थक करने के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह ने सही अर्थों में विवाह होने को सार्थक किया है इसलिए अपने दांपत्य जीवन को जीने वाले हमेशा ध्यान रखें कि यह विवाह एक विश्वास का प्रतीक है एक-दूसरे का सम्मान और एक-दूसरे की सहमति हरेक कार्य में हो, तब कोई आगे कार्य किया जाए। दांपत्य जीवन में विवाह के इस महत्व को परिभाषित किया राष्ट्रीय संत परम पूज्य श्री चिन्मयानंद बापू ने जो स्थानीय परिणय वाटिका में वैकुण्ठवासी श्री राधेश्याम पहारिया स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत में कथा श्रवण कर रहे श्रद्धालुओं को बता रहे थे।
इस अवसरपर कथा यजमान श्रीमती लाली-शैलेन्द्र पहारिया एवं श्रीमती सनाया-शिवम पहारिया परिवार के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह के रूप में विवाह महोत्सव की झांकी के साथ भव्य बारात एवं मंगल आगवानी कार्यक्रम की विधियां हुई यहां बग्गी पर भगवान श्रीकृष्ण का आगमन हुआ और श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह के रूप में श्रद्धालुओं ने उत्साह और उल्लास के साथ नृत्य करते हुए यह मंगल विवाह महोत्सव मनाया। इसी क्रम में श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनाते हुए भगवान ने कहा कि माता रुक्मणी के अनन्य प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उनका पाणिग्रहण संस्कार किया और धूमधाम से पंडाल में विवाह उत्सव मनाया गया। सुंदर भगवान की बारात पांडाल में लाई गई और मंच के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मणी का वरमाला संस्कार कराया गया।
इस अवसर पर सभी श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा करते हुए भगवान की रासलीला का भी आनंद लिया और गोपियों के वियोग को भी कथा में बताया गया। बाद में रासलीला की कथा का रसपान कराते हुए बापूजी ने कहा कि भगवान की लीला पर कभी भी हमें संदेह नहीं करना चाहिए क्योंकि भगवान कृष्ण सामर्थ्य बान हैं, हम भगवान की बराबरी कभी नहीं कर सकते जो सामर्थ गंगा जी में हैं वह गंगा जल में नहीं है, गंगाजल में यदि कोई कुत्ता मुंह लगा दे तो हम अपने घरों में उस से भगवान का अभिषेक नहीं करेंगे, लेकिन गंगा जी में रोज हजारों कुत्ते बहते चले जाते हैं फिर भी हम गंगा जी को पवित्र मानकर स्नान करते हैं क्योंकि गंगा सामर्थ्य बान है और गंगाजल में उतनी सामर्थ नहीं है। बापूजी ने कहा कि हम मनुष्य ईश्वर के अंश जरूर हैं लेकिन ईश्वर नहीं हो सकते इसलिए हम कभी भी ईश्वर की किसी भी लीला पर संदेह ना करें। इस भव्य आयोजन में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा स्थल पहुंचकरण धर्मलाभ प्राप्त किया।
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