प्रेमचंद साहित्य में प्रतिरोध पर विचार गोष्ठी संपन्न
शिवपुरी। म.प्र.प्रगतिशील लेखक संघ और मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की शिवपुरी इकाई ने विगत दिवस संयुक्त रूप से एक विचार-गोष्ठी कर प्रेमचंद जयंती मनाई। 'प्रेमचंद साहित्य में प्रतिरोधÓ विषय पर आयोजित इस विचार-गोष्ठी में शिक्षक राजेन्द्र टेमक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, प्रेमचंद ने न सिर्फ़ अपने लेखन से पाठकों के सामने उच्च आदर्श रखे, बल्कि निजी जीवन के व्यवहार से भी देशवासियों के सामने आदर्श प्रस्तुत किए। उन्होंने एक विधवा महिला से शादी की, तो महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेजों की नौकरी तक छोड़ दी। कवि रामकृष्ण मोर्य ने कहा, प्रेमचंद ने अपने साहित्य में गऱीब तबक़े की अगुआई की और सामाजिक उत्थान के लिए निरंतर लेखन किया। श्रीमती हेमलता चौधरी ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य आदर्श और यथार्थ का अनुपम संगम है। वह नवयुग के निर्माता थे। बाल विवाह, विधवा विवाह, अशिक्षा, सती प्रथा और दहेज प्रथा जैसी नारी जगत से जुड़ी समस्याओं को उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रमुखता से उठाया। और अपनी ओर से इनका समाधान पेश किया।
लेखक ज़ाहिद ख़ान ने अपने एक लेख का वाचन करते हुए कहा,प्रेमचंद साहित्य के किरदार अपनी जिंदगी की बदहाली के लिए किस्मत को ही जिम्मेदार मानकर खामोश नहीं बैठ जाते, बल्कि जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं। उनमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चेतना है, जो उन्हें शोषण के खिलाफ संघर्ष के लिए उकसाती है, वे ज़ुल्म-ओ-सितम के आगे समर्पण नहीं कर देते, प्रतिरोध के लिए डटकर खड़े हो जाते हैंं। यही वह ख़ास बातें हैं, जो प्रेमचंद के साहित्य को दूसरों से अलग करती है। नवगीतकार विनय प्रकाश जैन नीरव व प्रोफेसर पुनीत कुमार ने कहा, प्रेमचंद अपने साहित्य में प्रतिरोध को प्रश्रय देते हैं। उनके साहित्य में यह प्रतिरोध विध्वंसात्मक नहीं, बल्कि सकारात्मक और रचनात्मक है। उन्होंने कहा, जब तक जीवन में मानव निर्मित विडंबनाएं रहेंगी, प्रेमचंद साहित्य प्रासंगिक रहेगा।
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