नेत्रदान पखवाड़े के तहत शुक्रवार को नेत्र रोग विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
शिवपुरी। श्रीमंत राजमाता विजया राजे सिंधिया चिकित्सा महाविद्यालय शिवपुरी में शुक्रवार को मां सरस्वती की प्रतिमा पर विभागाध्यक्ष नेत्र विभाग डॉ.ऋतु चतुर्वेदी और प्रभारी अधिष्ठाता डॉ. ईला गुजारिया एवं अन्य चिकित्सकों द्वारा नेत्रदान दीप प्रज्ज्वलित कर नेत्रदान पखवाडे के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नेत्रदान रोग विभागाध्यक्ष डॉक्टर ऋतू चतुर्वेदी ने कहा कि नेत्रदान को महादान कहा जाता है, क्योंकि इस दान से दृष्टिहीन लोगों को दुनिया देखने का मौका मिलता है. लेकिन सामाजिक व धार्मिक परंपराओं के चलते या डर व भ्रम के कारण लोग नेत्रदान करने से डरते हैं. वहीं जो लोग ऐसा करना भी चाहते हैं, वे नेत्र प्रत्यारोपण से जुड़ी जरूरी जानकारियों के अभाव में वे नेत्रदान नहीं कर पाते हैं. भारत में Eye Donation के बारे में आमजन में जागरूकता बढ़ाने, उससे जुड़े भ्रमों की सच्चाई से लोगों को अवगत कराने और लोगों को मृत्यु बाद Eye Donation के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 25 अगस्त से 8 सितम्बर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जा रहा है।
इस दौरान प्रभारी अधिष्ठाता डॉक्टर ईला गुजारिया ने कहा कि नेत्रदान पखवाड़े का उद्देश्य लोगों को नेत्रदान के महत्व के बारे में शिक्षित करना, मिथकों को दूर करना और लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। अभियान का उद्देश्य प्रत्यारोपण के लिए कॉर्निया की कमी को दूर करना और सांस्कृतिक बाधाओं को तोड़ना भी है, जो अंगदान के बारे में लोगों के निर्णयों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। नेत्रदान के तथ्य मोतियाबिंद, दूरदृष्टि या दूरदृष्टि दोष, ऑपरेशन की गई आंखों या सामान्य बीमारियों से पीड़ित कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी उम्र, लिंग, धर्म या रक्त समूह कुछ भी हो, अपनी आंखें दान कर सकता है।
बतौर मुख्य अतिथि जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर गिरीश चतुर्वेदी ने कहा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा 1985 में राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा शुरू किया गया था. और तब से, हर साल भारत सरकार नेत्रदान के महत्व को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाती रही है। यह कार्यक्रम बाधाओं को तोड़ने, जागरूकता बढ़ाने और नेत्रदान की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद करता है.
इसके साथ ही अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर आशुतोष चौऋषि ने बताया कि आंखें मानव शरीर का एक बहुत ही कीमती अंग हैं। मरने के बाद आंखों को जलाकर या दफनाकर बर्बाद नहीं करना चाहिए। मृत इंसान की आंखें दान करने से दो दृष्टिहीन लोगों को दृष्टि मिल सकती है। नेत्रदान करने से कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों को अपनी दृष्टि वापस पाने में मदद मिल सकती है। कॉर्निया, जो आंख के सामने की ओर की स्पष्ट और पारदर्शी परत होती है। यह ट्रांसपेरेंट, गुंबद के आकार का हिस्सा है, जो आंख के बाहरी हिस्से को ढकता है। कॉर्निया प्रकाश को प्रवेश करने देती है, जिससे दृष्टि सक्षम होती है।
जो लोग नहीं कर सकते हैं नेत्रदान
एड्स, हेपेटाइटिस बी और सी, रेबीज, सेप्टीसीमिया, तीव्र ल्यूकेमिया, टेटनस, हैजा, एन्सेफलाइटिस और मेनिन्जाइटिस जैसे संक्रामक रोगों से पीड़ित अपनी आंखें दान नहीं कर सकते हैं।
इस कार्यक्रम में एमबीबीएस छात्र - छात्राओ द्वारा पोस्टर प्रजेंटेशन के माध्यम से (जागरूकता अभियान) नेत्ररोग विभाग द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रभारी अधिष्ठाता डॉ इला गुजारिया, अधीक्षक डॉ आशुतोष चौऋषि, डॉ पंकज शर्मा, डॉक्टर अनंत राखूंडे, डॉक्टर अपराजिता तोमर, डॉक्टर गिरीश चतुर्वेदी सहित वरिष्ठ चिकित्सकगण, जूनियर रेसिडेंट, सीनियर रेसिडेंट, पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ, उपस्थित हुए, कार्यक्रम संयोजन एवं सफल संचालन सीनियर रेसीडेन्ट डॉ आयशा द्वारा किया गया।
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