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Sunday, July 14, 2024

" मेरे हमसफर"


मेरे हमसफर तुम हुए हमकदम

तुम्हारी नवाजिश तुम्हारा करम
कहाँ से चले थे,कहाँ आ गए हम
सोचा नहीं था वहाँ आ गए हम

मिले तुम अचानक तो सोचा कहाँ था
कि तुम्हारे ही पहलू में मेरा जहाँ था
मेरे सदमों को मयस्सर जमीं भी नहीं थी
और तुम्हारा जहाँ तो वो आसमां था
थामा जो तुमने तो उठ कर जमीं से
हुई हमकदम मैं चली संग तुम्हारे
जो रस्ते अलग थे हुए इक हमारे

आँखों को मीचे, चली पीछे- पीछे
आँखें खुली तो खुला आसमां था
हां, यही तो मेरे सपनों का जहाँ था,
अब सोचती हूँ,
कहाँ से चले थे कहाँ आ गए हम  
सोचा नहीं था वहाँ आ गए हम।
तुम्हारी नवाजिश तुम्हारा करम
मेरे हमसफर तुम हुए हमकदम

जज़्बात- ए - पूनम
द्वारा- पूनम राजपूत

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