सागर । तेदूपत्ती की गड्डियों के भुगतान हेतु पैसे समिति के खाते में डालने की एवज में रिष्वत लेने वाले आरोपी डिप्टी रेंजर दीपक कुमार अहिरवार को विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर म.प्र श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने दोषी करार देते हुये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7 के अंतर्गत 04 वर्ष का सश्रम कारावास एवं दस हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है।मामले की पैरवी प्रभारी उप-संचालक (अभियोजन) श्री धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्षन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी श्री लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।
घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि दिनांक 25.07.19 को आवेदक देवेंद्र रैकवार ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को सम्बोधित करते हुये एक लिखित शिकायत/आवेदन इस आशय का दिया कि तेंदूपत्ती की 29,150 गड्डी के 72,875/-रू. समिति के खाते में डलना शेष थे, उक्त राशि डलवाने के संबंध में डिप्टी रेंजर अभियुक्त दीपक कुमार अहिरवार से उसके कार्यालय ढाना में जाकर बातचीत करने पर अभियुक्त द्वारा खाते में पैसे डालने के ऐवज् में 25,000/-रु. रिश्वत की मांग की, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है, अतः कार्यवाही की जाए। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वि.पु.स्था. लोकायुक्त कार्यालय, सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्यवाही हेतु उप-पुलिस अधीक्षक राजेश खेड़े को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकॉर्डर दिया गया इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकॉर्ड करने हेतु निर्देशित किया तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मॉगवार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्यवाहियॉ की गई एवं टेªप कार्यवाही आयोजित की गई ।
नियत दिनॉक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राषि दी गई व अभियुक्त के शासकीय आवास पर आवेदक ने अभियुक्त से रिश्वत लेनदेन हो जाने का निर्धारित इशारा किया तो ट्रेपदल के सदस्यों ने अभियुक्त को घेर लिया। उप-पुलिस अधीक्षक राजेश खेड़े ने अपना व टेªपदल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, उससे रिश्वत राशि के संबंध में पूछा, तो अभियुक्त ने 20,000/-रू. रिश्वत राशि आवेदक से अपने हाथ में लेकर पलंग पर रखे तकिये के नीचे रख लेना बताया। मौके पर घोल आदि की अग्रिम कार्यवाही की गई। उक्त आधार पर प्रकरण पंजीवद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया ।
विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये , घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया उन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7, 13(1)(बी) सहपठित धारा 13(2)का अपराध आरोपी के विरूद्ध दर्ज करते हुये विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेष किया।विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया । जहॉ विचारण उपरांत न्यायालय-विषेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुये उपरोक्त सजा से दंडित किया है ।
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