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Thursday, January 4, 2024

महिलाओं और दलित वर्ग को शिक्षित करने के लिए जाना जाता है सावित्री बाई फुले को : डॉ.गोविन्द सिंह


मातृशक्ति के द्वारा सावित्री बाई फुले जयंती पर हुआ वर्चुअल संवाद

शिवपुरी- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मातृशक्ति संगठन के द्वारा वर्चुअल रूप से महिला सशक्तिकरण को परिभाषित करते हुए सावित्री बाई फुले जयंती पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य रूप से सेवानिवृत्त सिविल सर्जन डॉ.गोविन्द सिंह एवं सेवानिवृत्त महिला बाल विकास विभाग से श्रीमती ओमवती दीदी के द्वारा संवाद करते हुए सावित्री बाई फुले के जीवन पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान कार्यक्रम की शुरूआत मातृशक्ति विभाग की संयोजिका डॉ.श्रीमती सुषमा पाण्डे के द्वारा की गई जिन्होंने सारगर्भित शब्दों में इस पूरे वर्चुअल कार्यक्रम के बारे में ऑनलाईन जुड़े सभी पदाधिकारी व सदस्यों को कार्यक्रम से अवगत कराया 

तत्पश्चात डॉ.गोविन्द सिंह के द्वारा बताया गया कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था, इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले का विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ था। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिराव को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है, उनको महिलाओं और दलित जातियों का शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना।

 वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। इस दौरान ओमवती दीदी ने सावित्री बाई फुले की सामाजिक मुश्किलों से अवगत कराते हुए बताया कि जब सामाजिक मुश्किलें सामने थी तब वह स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग उन पर पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 191 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब ऐसा होता था, सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे।

 सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। इस दौरान इस वर्चुअल संवाद में मातृशक्ति विभाग संयोजक डॉक्टर सुषमा पांडे, सह संयोजक श्रीमती किरण उप्पल, विभा रघुवंशी, सुंदरी चौहान, शोभा पुरोहित, रेखा गुप्ता, लक्ष्मी गर्ग, पिंकी गोस्वामी, अनु मित्तल, रश्मि भट्ट, सुरेखा सरिता अस्थाना, आनंदी शर्मा एवं मंजू कुलश्रेष्ठ उपस्थित रही।

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