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Thursday, November 2, 2023

सिर्फ शरीर को सुखाना तप नहीं, आत्मा को तपाना आवश्यक है : साध्वी नूतन प्रभाश्री


जैन साध्वी ने बताया कि तप को कैसे बनाया जा सकता है कारगर

शिवपुरी-तप, मोक्ष का द्वार है, लेकिन तप के साथ-साथ जप, धर्म आराधना, संवर, सामायिक, पोषद और प्रतिक्रमण भी आवश्यक है। आज पहले की तुलना में तप करने वालों की संख्या बड़ी है एक साथ 1500 सिद्धी तप और 307 मासखमण (30 उपवास की तपस्या) हो रही है, लेकिन इन तपस्याओं को करना कारगर तभी होगा जब हम एकांकी तप तक सीमित न हो और धर्म आराधना तथा जप भी करें। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने तप कैसे जीवन के लिए उपयोगी बनेंगा, इसे अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया। भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्यन सूत्र का वाचन करते हुए साध्वी जी ने बताया कि आगम के सातवें अध्ययन में भगवान ने जीवन की महत्वता बताई है।

प्रारंभ में साध्वी जयश्री जी ने जो वीर प्रभू गुण गाएगा, वो भवसागर तिर जाएगा, भजन का सुमधुर स्वर में गायन किया। इसके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर संदेश देते-देते मोक्ष को गए थे। उन्होंने उत्तराध्यन सूत्र के सातवें अध्यन्न में बताया है कि मनुष्य जीवन को काम, भोग, विषय और कंषाय में खराब मत करो। काम भोगों से निव्रत नहीं हुए और आत्म चिंतन नहीं किया तो यह अनमोल जीवन व्यर्थ हो जाने लगा है। इसी बीच साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भजन गायन करते हुए कहा कि जीवन में किसी भी पल में वैराग्य उमड़ सकता है, संसार में रहकर प्राणी संसार को तज सकता है। 

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जैसे-जैसे संसार में रहकर लाभ की मात्रा बढ़ती जाती है। उसी अनुपात में लोभ भी ब?ता जाता है और मानव दुर्गति की ओर कदम बढ़ा लेता है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने परदेशी राजा की कहानी को सुनाते हुए कहा कि वह शरीर अलग है और आत्मा अलग है। इसमें विश्वास नहीं करता था। सच्चाई जाननेे के लिए उसने कई मनुष्यों का बध कर दिया था और कहता था कि यदि आत्मा अलग है तो मुझे उसे दिखाओ लेकिन जीवन में परिवर्तन आया और फिर तप करके उसने सदगति को प्राप्त किया। परदेशी राजा कठोर तपस्या करता था और साथ में पोषद प्रतिक्रमण और धर्म आराधना भी करता था। इस तरह से उसने सही मायने में तपस्या को अपने जीवन में अंगीकार कर मोक्ष पद को प्राप्त किया।  

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