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Monday, November 6, 2023

भगवान महावीर ने बताई ज्ञानी और अज्ञानी की पहचान: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी


कमला भवन
 में धर्मसभा के माध्यम से साध्वी ने दिया धर्म-ज्ञान का संदेश

शिवपुरी। दीपावली की रात्रि को मोक्ष गमन से पूर्व भगवान महावीर ने 48 घंटे तक धर्मदेशना दी थी। जो उत्तराध्यन सूत्र में वर्णित है। उत्तराध्यन सूत्र के 11 वें अध्याय में भगवान महावीर स्वामी ने ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति की पहचान बताई थी। भगवान ने बताया था कि ज्ञानी और सम्यक ज्ञान का आराधक पूज्यनीय होता है। केवल सिद्धी और विद्या प्राप्त करने से ज्ञानी नहीं हुआ जा सकता। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। 

धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदना श्री जी ने प्रभू भक्ति से पूरे सभा स्थल को आध्यात्मिकता के रंग से सराबोर कर दिया। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर ने फरमाया है जो व्यक्ति अहंकारी, क्रोधी, आलसी, प्रमादी और रोगी होता है। वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञानी व्यक्ति में विनयशीलता होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि ज्ञानी व्यक्ति वह है जो अहंकार, रसलोलुपता, क्रोध, प्रमाद और रोग से मुक्त है। ज्ञानी व्यक्ति में क्या-क्या गुण होना चाहिए। इसका भी साध्वी जी ने उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि ज्ञानी व्यक्ति हंसी मजाक नहीं करने वाला होता है। इन्द्रियों पर संयम रखता हैए किसी का मर्म या रहस्य उसे पता होता है तो उसे उदघाटित नहीं करता। चारित्रक दृष्टि से वह मजबूत होता है और दोषों का सेवन न करने वाला होता हैए क्रोध नहंी करता। 

अहंकार से दूर रहता है। हमेशा सत्य बोलता है यदि यह गुण व्यक्ति धारण करता है तो वह ज्ञानी और शास्त्र मर्मज्ञ बन सकता है और ऐसा ज्ञानी व्यक्ति पूज्यनीय होता है। जबकि अज्ञानी और अविनीत व्यक्ति के लक्ष्ण होते है कि वह बार-बार क्रोध करता हैए लम्बे समय तक क्रोध करता ह, मित्रता को ठुकरा देता है, ज्ञान प्राप्त कर अहंकारी हो जाता है, गुरूओं की असाधना करता है। दोस्त पर क्रोध करने वाला होता है और मित्र की निंदा करने वाला तथा असंबद्ध भाषा का बोलने वाला होता है तथा द्रोही होता है ऐसा व्यक्ति कभी पूज्यनीय नहीं होता।

भगवान महावीर के उत्तराध्यन सूत्र के 10वें अध्ययन का विश्लेषण करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है। जीवन बुढ़ापे तक जाएगा यह निश्चित नहीं है। इसलिए लेश मात्र भी प्रमाद न कर धर्म आराधना करना चाहिए और अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने बताया कि 84 लाख जीव योनि में भटक कर यह दुर्लभ मानव जीवन प्राप्त किया गया है इसे व्यर्थ न गंवाएं।

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