हस्तशिल्प कला से लेकर फिल्मी शूटिंग को भी स्कूली बच्चों ने नजदीक से जाना, 133 छात्र-छात्राओं का दल हुआ शामिलशिवपुरी-शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आदर्श नगर के छात्र.छात्राओं के 133 सदस्यीय दल ने शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम के दौरान अशोकनगर जिले के ऐतिहासिक स्थल चंदेरी का भ्रमण किया। इस शैक्षणिक ट्रिप के दौरान स्कूली दल ने चंदेरी के म्यूजियम में पुरातात्विक महत्व की नौवीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक की कलाकृतियोंं, पाषाण मूर्तियां, को नजदीकी से देखा और परखा साथ ही पुरातत्व महत्व की मुद्रा, हथियारों के बारे में भी गहन जानकारी प्राप्त की।
शिवपुरी से चंदेरी रवाना हुए इस दल ने बुन्देला राजपूत राजाओं द्वारा बनवाया विशाल चंदेरी किला भी देखा। यह किला राजपूत राजाओं के काल की स्थापत्य कला की जीवंत मिशाल है। किले के मुख्य द्वार को खूनी दरवाजा कहा जाता है। यह किला पहाड़ी की एक चोटी पर बना हुआ है। यह पहा?ी की चोटी नगर से 71 मीटर ऊपर है। स्कूली छात्र.छात्राओं के दल ने यहां जौहर कुंड बैजू बावरा का स्मारक और जागेश्वरी माता के प्राचीन मंदिर को भी नजदीक से निहारा।
इस भ्रमण दल को विद्यालय के शिक्षक भगवत शर्मा, हरिराम मिश्रा, संध्या शर्मा, सपना चौहान, बृजेश बाथम, मनोज पुरोहित, स्नेह सिंह रघुवंशी, रीता गुप्ता, कैलाश भार्गव के मार्गदर्शन में विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती अनीता खंडेलवाल के द्वारा भ्रमण की अनुमति दी गई थी। बच्चों ने यहां चंदेरी साडिय़ों की निर्माण प्रक्रिया के हस्तकला कौशल को भी नजदीक से जाना और परखा तानावाना से भी परिचित हुए बच्चे। यहां उन्हें बताया गया कि चंदेरी हस्तशिल्प कला का जन्म मलमल कपड़े के साथ शुरु हुआ बाद में इससे राज परिवारों के लिए वस्त्र बनाये जाने लगे।
इस भ्रमण दल को विद्यालय के शिक्षक भगवत शर्मा, हरिराम मिश्रा, संध्या शर्मा, सपना चौहान, बृजेश बाथम, मनोज पुरोहित, स्नेह सिंह रघुवंशी, रीता गुप्ता, कैलाश भार्गव के मार्गदर्शन में विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती अनीता खंडेलवाल के द्वारा भ्रमण की अनुमति दी गई थी। बच्चों ने यहां चंदेरी साडिय़ों की निर्माण प्रक्रिया के हस्तकला कौशल को भी नजदीक से जाना और परखा तानावाना से भी परिचित हुए बच्चे। यहां उन्हें बताया गया कि चंदेरी हस्तशिल्प कला का जन्म मलमल कपड़े के साथ शुरु हुआ बाद में इससे राज परिवारों के लिए वस्त्र बनाये जाने लगे।
तब राजघरानों के लिए परिधान साड़ी, पगड़ी, दुपट्टा, शॉल, ओडऩी, पर्दा आदि बनाए जाते थे। बच्चों को यहां जानकारी मिली कि 15 वीं शताब्दी में मालवा के सुल्तानों द्वारा भी इसे संरक्षण दिया गया था। चंदेरी के भ्रमण के दौरान फिल्म स्त्री टू की शूटिंग यूनिट द्वारा की जा रही फिल्म की शूटिंग को भी देखने का अवसर मिला जिसे मुंबई की बॉलीवुड टीम द्वारा फि ल्माया जा रहा था।
No comments:
Post a Comment