साध्बी पूनम श्रीजी ने बताया कि भगवान ने दिया था एकता का संदेश और हम
श्वेताम्बर,दिगम्बर,तेरापंथी,पोरवाल,ओसवाल के नाम पर एक दूसरे से लड रहे हैं
शिवपुरी। भगवान महावीर की जय जयकार करने वालों ने उनके आचरण, उपदेशों, और संदेशों को अपने जीवन में नहीं उतारा। उन्होंने भगवान को तो माना लेकिन उनकी नहीं मानी। भगवान महावीर ने एकता का संदेश दिया लेकिन हम उनके संदेश की भावना को समझने में भूल कर गये। कभी अपने-अपने गुरु, कभी अपने-अपने संप्रदाय और कभी अपनेे-अपने गच्छ के नाम पर एक दूसरे से लडने और झगडने लगेे। इसी कारण से जैन धर्म पिछडा है औेर लगातार पिछडता जा रहा है। उक्त हृदय स्पर्शी उदगार तपस्वी रत्न साध्बी पूनम श्रीजी ने कमला भवन मेें आयोजित विशाल धर्म सभा में व्यक्त किए। साध्बी नूतन प्रभा श्रीजी ने अपने उदबोधन मेंं कहा कि पुण्य करना मुश्किल होता है। लेकिन उसका फल मीठा होता है जबकि पाप करना आसान होता हैे परन्तु पाप जब उदय में आता है तो बहुत कष्ट भोगना होते है। उन्होंने कहा कि इन्सान हंंसते-हंसते पाप करता है लेकिन उसे रोते-रोते पाप का फल भोगना पडता है।
प्रारंभा में साध्बी बंंदना श्रीजी ने सामाजिक एकता का शंखनाद करते हुए भजन सुनाया कि श्बेताम्बर दिगम्बर का कोई नाम न मुझे देना, न ओसवाल मुझे क हना न पोरवाल मुझे कहना,श्रावक ही मेरी पहचान, मै जैन हूँँ, यही मेरा सम्मान। इसी बात को आगे बढाते हुए साध्वी पूनम श्रीजी ने कहा कि भगवान महावीर के नाम पर धर्म की ठेकेदारी प्रारंभ हो गई है, यह दुर्भाग्य जनक है। भगवान महावीर दूसरे स्थान पर पहुँंच गए है। पहले स्थान पर कब्जा धर्म गुरुओं और संंप्रदायों ने कर लिया है। यह भी होता तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन दिक्कत का कारण कट्टरता है। अपने-अपने धर्म गुरुओं और संप्रदायों का सम्मान करने का अर्थ दूसरों का अपमान करना कतई नहीं होना चाहिए। साध्वी जी ने कहा कि हम देश भर में भ्रमण करते हैे और कभी-कभी दूसरे संंप्रदाय या धर्म गुुरुओं को मानने वालों के यहां गोचरी (आहार) के लिए जाना होता है तो वेे इन्कार कर देते है जबकि भगवान महावीर ने सुपात्र दान को मोक्ष का द्वार बताया हैे।
साध्बी पूनम श्रीजी ने कहा कि इसी कारण हमारी सामाजिक एकता खण्डित हो रही है। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर जैेनियों की पूछ परख कम हो गई है। यहां तक कि जैन धर्म का सबसे प्रमुख और पवित्र त्यौहार संवत्सरी पर्व है। लेकिन इस पर्व पर भी किसी भी राज्य में छुट्टी घोषित नहीं की है। साध्बी पूूनम श्रीजी नेे दुख भरे स्वर में कहा कि हमारा एक जैन भाई आगे बढता है तो हमें खुश होना चाहिए लेकिन होता यह है कि हमारे ही चार भाई उसकी टांग खीच देतेे है। इसका साफ अर्थ है कि भगवान महावीर के संदेश को हमने अपने आचरण में नहीं उतारा। हम महावीर क ो मानने वाले उनकी बात को न मानने वालों में हैंं। साध्बी जी नेे कहा कि हमने अपने मंदिरों का ठेका पुजारियों को और स्थानकों का ठेका साधु, साध्वियों को दे दिया हैै। हमने अपने आप को मुुक्त रखा है।
बुरार्ईयाँ ढूंढना है तो अपनी ढूंढों दूसरो की नहीं
साध्वी रमणीक कुंवर जी ने कहा कि भलाई करना अच्छा है लेकिन उससे भी अच्छा हैै अपनी बुराईयों को ढूंढों। उन्होंने कहा कि जो अपनी बुराईयां देख लेता है फिर उसके जीवन में अच्छाईयांं आना स्वयं ही शुरू हो जाती हैं। उन्होंंने कहा कि 2500 साल पहले एक महावीर हुुए थे लेकिन आज अपनी दुकानदारी चलाने के लिए हमने सैकडों महावीर बना लिये हैं औेर जिद् इतनी है कि सिर्फ अपने महावीर को ही श्रेष्ठ बताकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्र्रयास करते हैं लेकिन इससे जैन धर्म की अवनति हो रही है। सामाजिक एकता से धर्म की उन्नति होती है।
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