दो दर्जन से अधिक कम्बल कीड़े के रेशों को निकाला आंख से किया बाहर, बुरी तरह हो चुकी थी जख्मीशिवपुरी-व्यवसायिक होती जा रहे चिकित्सकीय तंत्र में प्रख्यात नेत्र सर्जन डॉ गिरीश चतुर्वेदी एक ऐसे अपवाद है जो परपीड़ा से आहत हो जाते है। पीड़ा से तडफ़ रहे मरीज के चेहरे पर इलाज के बाद सुकून का भाव देखकर उन्हें आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। ऐसा ही एक केस आज उनके सामने आया जब एक आदिवासी युवक की आंख में कम्बल कीड़े के दो दर्जन से अधिक रेशे (डंक नुमा रेशे)थे जिन्होंने आंख को बुरी तरह जख्मी कर दिया था और युवक दर्द से तडफ़ रहा था। यह डंक उस युवक के सोते समय कीड़े के मसल जाने से आंख में घुस गए थे जिससे आंख पूरी तरह सूज गयी थी।
डॉ गिरीश चतुर्वेदी ने तत्काल प्रभाव से एक छोटी सर्जरी कर दो दर्जन से अधिक रेशे बाहर निकाले। इन रेशों ने आंख को बुरी तरह लहूलुहान कर दिया था। रेशे बाहर आते ही युवक को राहत मिली। विदित रहे कि इससे पूर्व डॉ गिरीश चतुर्वेदी ने दर्द से छटपटाते एक बच्चे की आंख से जिंदा कीड़े को बाहर निकाला था जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था। डॉ गिरीश चतुर्वेदी आहलिया हॉस्पिटल केरल के मशहूर सर्जन रहे है और अब तक पच्चीस हजार से अधिक सफल ऑपरेशन कर चुके है।
बस यही मेरी पूजा है : डॉ गिरीश
डॉ गिरीश चतुर्वेदी का कहना है दर्द से तड़पते मरीज के चेहरे पर इलाज के बाद आने वाली सुखद अनुभूति मुझे प्रतिदिन नई शक्ति दे देती है। ईश्वर की विशेष अनुकम्पा है कि इन हांथो से लोगो को रोशनी मिल जाती है। इस कीड़े के रेशे डंक के समान होते है जो आंख को बुरी तरह जख्मी कर देते है। उनका यह भी कहना है कि आने वाले समय मे वे कमजोर वर्ग के लिए चेरिटेबल अस्पताल भी बनायेगे।
बस यही मेरी पूजा है : डॉ गिरीश
डॉ गिरीश चतुर्वेदी का कहना है दर्द से तड़पते मरीज के चेहरे पर इलाज के बाद आने वाली सुखद अनुभूति मुझे प्रतिदिन नई शक्ति दे देती है। ईश्वर की विशेष अनुकम्पा है कि इन हांथो से लोगो को रोशनी मिल जाती है। इस कीड़े के रेशे डंक के समान होते है जो आंख को बुरी तरह जख्मी कर देते है। उनका यह भी कहना है कि आने वाले समय मे वे कमजोर वर्ग के लिए चेरिटेबल अस्पताल भी बनायेगे।
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