परिणय वाटिका में कांसल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में बताया गोवर्धन पूजा का महत्वशिवपुरी-शहर की छत्री रोड़ स्थित परिणय वाटिका परिसर में कांसल(गुप्ता)परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस के अवसर पर श्रीगोवर्धन लीला की कथा का वृतान्त व्यासपीठ से आचार्य कृष्णगोपाल जी महाराज के द्वारा उपस्थित श्रद्धालुओं के लिए श्रवण कराया। इसके पूर्व श्रीमद् भागवत कथा के यजमान जनों रामजीलाल, केदारीलाल, मोहन लाल, कैलाशचंद, महावीर प्रसाद, राजमल गुप्ता(राज पैलेस), महेश कुमार, मातादीन, अनिल, कपिल, तरूण, जयंत, अर्पित गुप्ता कांसल परिवार के द्वारा सर्वप्रथम श्रीमद् भागवत कथा का पूजन किया गया तत्पश्चात व्यासपीठ पर विराजमान आचार्यश्री से आर्शीवाद प्राप्त किया। यहां संरक्षक के रूप में रमेशचन्द्र शर्मा का सानिध्य और आर्शीवाद भी गुप्ता परिवार ने लिया।
श्रीमद् भागवत कथा का व्यासपीठ से वाचन करते हुए आचार्य कृष्णगोपाल जी महाराज ने बताया कि गोवर्धन लीला के साथ भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का प्रसंग सुनाया। इस दौरान भगवान के जन्मोत्सव, उनके नामकरण और पूतना वध के साथ माखनचोरी की लीलाओं का वर्णन सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। दाधीच ने कहा भगवान ने अपनी लीलाओं से जहां कंस के भेजे विभिन्न राक्षसों का संहार किया, वहीं ब्रज के लोगों को आनंद प्रदान किया। कथा के दौरान मथुरा-वृन्दावन से आए कलाकारों के द्वारा आकर्षक भगवान गिरिराज पर्वत को उठाते हुए सुंदर झांकी भी सजाई गई और कांसल(गुप्ता) परिवार के द्वारा गोवर्धन पूजपन भी सामूहिक रूप से किया गया। इस दौरान भजनों पर श्रद्धालु देर तक नाचते भी रहे।
यहां अहंकार के अभिमान का वर्णन श्रवण कराते हुए आचार्य कृष्णगोपाल जी महाराज ने कहा कि जब इंद्र को अपनी सत्ता और शक्ति पर घमंड हो गया था, उसका अहंकार दूर करने के लिए भगवान ने ब्रज मंडल में इंद्र की पूजा बंद कर गोवर्धन की पूजा शुरू करा दी। इससे गुस्साए इंद्र ने ब्रजमंडल पर भारी बरसात कराई। प्रलय से लोगों को बचाने के लिए भगवान ने कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिनों के बाद इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ।
कथा के दौरान गोवर्धन पूजन का उत्सव उल्लास के साथ मनाया गया। संगीतमय कथा के दौरान भजनों पर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भजनों पर नाचते रहे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय श्रद्धालुजन व गुप्ता परिवार के परिजन, रिश्तेदार भी कथा में शामिल हुए और अंत में रात्रि के समय अन्नकूट प्रसादी का सभी ने धर्मलाभ प्राप्त किया।
No comments:
Post a Comment