शिवपुरी- प्रत्येक वर्ष 12 जून, बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाता है और इस ओर प्रयास किया जाता है कि बाल श्रम की समस्या से दुनिया को छुटकारा दिलाने के लिए क्या किया जा सकता है।
इसी उद्देश्य के लिए शक्ती शाली महिला संगठन, ब्रिटानिया न्यूट्रीशन फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से बाल श्रम के लिए 200माताओं को जागरुक करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन महल सराय एवम आदिवासी बाहुल्य ग्राम सकलपुर में किया जिसमे रवि गोयल ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि भारत में 5 से 14 साल के बीच की उम्र के बच्चे भी बाल श्रम के दुष्चक्र में फंसे हैं उन्होंने कहा की वैश्विक स्तर पर बाल श्रम के विस्तार की पहचान करने और इसे खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2002 में बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस का शुभारंभ किया। प्रत्येक वर्ष 12 जून, बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाता है और इस ओर प्रयास किया जाता है कि बाल श्रम की समस्या से दुनिया को छुटकारा दिलाने के लिए क्या किया जा सकता है
भारत में 7 से 17 साल की उम्र के बीच के लगभग 1 करोड़ 30 लाख बच्चे काम में लगे हुए हैं। जब बच्चे नौकरी करते हैं या अवैतनिक काम करते हैं, तो उनके स्कूल जा पाने की या पढ़ाई पूरी कर पाने की गुंजाइश कम ही होती है, ऐसे में वे गरीबी के और गहरे दलदल में फंसते जाते हैं। भारत में अभी भी लाखों लड़कियां और लड़के हर दिन खादानों और कारखानों में काम करने जा रहे हैं, या सड़क पर सिगरेट इत्यादि बेच रहे हैं। इन बच्चों में से अधिकांश की उम्र 12 से 17 साल के बीच है और अपने परिवारों की जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए वे एक दिन में 16 घंटे तक काम करते हैं। चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि भारत में 5 से 14 साल के बीच की उम्र के बच्चे भी बाल श्रम के दुष्चक्र में फंसे हैं।
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वे बेरोज़गारी की चपेट में आते जाते हैं। भारत में, 15 से 17 वर्ष की आयु के सभी बच्चों में से 20 प्रतिशत, जानलेवा उद्योगों और खतरनाक नौकरियों में शामिल हैं। भारत में बाल श्रम के सटीक पैमाने को मापना मुश्किल है क्योंकि यहां यह अक्सर छिपा कर किया जाता है और कम ही रिपोर्ट किया जाता है। भारत में 7 से 17 साल की उम्र के बीच लगभग 1 करोड़ 80 लाख बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें “निष्क्रिय” माना जाता है, क्योंकि ये न तो रोजगार पा रहे हैं और न ही स्कूल जाते हैं। भारत में लापता होने वाले बच्चे बाल श्रम की सबसे गंदी और अंधेरी गलियों में धकेल दिए जाते हैं।
भारत सरकार ने 1993 में बाल श्रम के खिलाफ एक कानून बनाया जिसमें खतरनाक काम या गतिविधियों पर रोक लगाई गई जो 18 साल से कम उम्र के लड़कियों और लड़कों के मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक या सामाजिक विकास को नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि, कानून में मिली छूट का लाभ लेकर बाल श्रम अभी भी जारी है। उदाहरण के लिए, बच्चों को काम करने की अनुमति है अगर यह काम पारिवारिक व्यवसाय का हिस्सा है। इसके चलते, सड़क पर सिगरेट बेचने वाले बच्चों को अवैधानिक बाल श्रम नहीं माना जा सकता है यदि यह एक पारिवारिक व्यवसाय का हिस्सा है।
भारत में बाल श्रम को रोकने के लिए राजनीतिक परिदृश्य में बहुत कुछ किया जाना चाहिए। बाल श्रम के खिलाफ कानूनों को और कड़ा किया जाना चाहिए और इन्हें और अधिक सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा, बाल श्रम के मूल कारण यानी गरीबी का मुकाबला करना भी बेहद महत्वपूर्ण है।
प्रोग्राम में प्रमोद गोयल ने कहा की सकलपुर के पास ईट भट्ठा या ज्वालन शील गिट्टी गट्टा वालो कारखानों में बच्चो को न भेजे इन बच्चो को पढ़ने के लिए स्कूल भेजे जिससे की इनको बुद्धि का विकास हो एवम आगे चलकर ये अच्छे नागरिक बने । प्रोग्राम में महल सराय स्कूल की प्रधान अध्यापिका श्रीमती कमलेश खरे ने कहा की महल सराय में माता पिता अपने बच्चो को काम में लगा देते है जिससे की बच्चो की पढ़ाई बाधित होती है उन्होंने बच्चो को माताओं से आग्रह किया को आप कृपया अपने बच्चो को स्कूल अवश्य भेजे । प्रोगाम में शक्ती शाली महिला संगठन की पूरी टीम, महल सराय स्कूल का पूरा स्टाफ, आगानवाड़ी कार्यकर्त्ता, हेल्पर, के साथ समुदाय की बच्चो की माताओं एवम बच्चो में भाग लिया।
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