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Monday, November 21, 2022

जेंडर आधारित भेदभाव समाज को कमजोर बनाता है : एसपी राजेश सिंह चंदेल


बाल संरक्षण सप्ताह के समापन अवसर पर कार्यक्रम संपन्न

शिवपुरी-प्रकृति और संविधान स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेदभाव नहीं करता। समाजिक व्यवस्थाएं स्त्री-पुरुष के बीच खाई पैदा करतीं है। जेंडर आधारित यह व्यवस्था समाज को कमजोर बनाती है। सामाजिक तरक्की के लिए समता मूलक समाज का निर्माण जरूरी है। यह बात पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल ने कही। वे सोमवार को बाल संरक्षण सप्ताह के समापन अवसर पर पीजी कालेज में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर भाई-बहन बाइक से साथ जा रहे है तो बाइक भाई ही चलाएगा, भले ही बहन उसे चलाना जानती हो, भाई कभी नहीं सोचता कि उसकी बहन आत्मनिर्भर बने। यह सब सुनने में बहुत छोटी बाटे है, पर इनके मायने बहुत महत्व रखते है। 

इस दौरान कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ क्या मर्दानगी जेंडर आधारित हिंसा का कारण है? विषय पर वाद- विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। जिस पर स्टूडेंट्स ने अपने अपने विचार रखे। कार्यक्रम में छात्र छात्राओं द्वारा नुक्कड़ नाटक के माध्यम से बाल अधिकार संरक्षण का तथा संस्कृति नृत्य के माध्यम से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया। 

सप्ताह भर आयोजित गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान किये गये। इस दौरान पीजी कॉलेज के प्राचार्य महेंद्र कुमार, प्रोफेसर डॉ यूसी गुप्ता, डॉ पवन श्रीवास्तव, अरविंद शर्मा, जनभागीदारी समिति अध्यक्ष अमित भार्गव, सांसद प्रतिनिधि मयंक दीक्षित, ममता संस्था की जिला संयोजक कल्पना रायजादा, चाइल्ड लाइन सिटी कॉर्डिनेटर सौरभ भार्गव, सेंटर कॉर्डिनेटर अरुण कुमार सेन एवं अन्य टीम सदस्य मौजूद रहे।

स्त्री की अस्मिता से खिलवाड़ मर्दानगी नहीं : बाल संरक्षण अधिकारी राघवेन्द्र शर्मा
कार्यक्रम में बाल संरक्षण अधिकारी राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि महिलाओं की अस्मिता को रौंदना मर्दानगी नहीं होता, महिलाओं को महफूज रखने,उनकी हिफाजत करने का जज्बा होना मर्दानगी होता है। मर्दानगी शब्द पुरुषत्व नहीं बल्कि पुरुषार्थ का प्रतीक है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के युवाओं को ना- मर्द रोगी मिलें, मर्दाना ताकत प्राप्त करें, जैसे इस्तिहार भ्रमित कर देते है। इस तरह के इस्तिहारों से पटीं दीवारों को आपने जरूर देखा होगा। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के भ्रमित युवाओं को मर्दाना ताकत प्राप्त करने के लिए इन हकीमों के चक्कर में पड़ जाते है, मर्दानगी वो पुरुषार्थ है, जिसे अपने आत्मविश्वास से हासिल किया जा सकता है। स्त्री अस्मिता को रौंदने वाली जिस सोच को लोग मर्दानगी कहते है, वो मर्दानगी नहीं बल्कि मुर्दानगी होती है।

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