मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज एवं मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में होने जा रहा भव्य आयोजनलगाया जाएगा स्वस्थ्य शिविर, दो दर्जन से अधिक डॉक्टर रहेंगे मौजूद, वितरण की जाएंगी दवाएं
शिवपुरी-धर्म की रक्षा करने वाले 20वीं सदी में लुप्त प्राय: हो चुकी श्रमण परंपरा को पुनजीर्वित करने वाले और सदी के प्रथमाचार्य श्री 108 शांतिसांगर जी महाराज के व्यक्तित्व एवं जिनधर्म पर किये उपकारों से उत्तर भारत की वर्तमान पीढ़ी पूर्णत: अनभिज्ञ है उन मुनिकुल पितामाह के विराट व्यक्तित्व को जन-जन तक पहुंचाने हेतु आगामी 6 से 9 अक्टूबर तक भव्य मुनिश्री शांतिसागर जी महाराज के जीवन पर व्यक्तित्व परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय श्रीदिगम्बर छत्री जैन मंदिर परिसर में किया जा रहा है। यहां पावन सानिध्य मंदि प्रांगण में चार्तुमास कर रहे प्रसिद्ध मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज एवं मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज का पावन सानिध्य जैन समाज को प्राप्त होगा। इस दौरान मुनिश्री सुप्रभसागर जी एवं मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज के द्वारा संयुक्त रूप से पत्रकारों से चर्चा करते हुए इस धार्मिक आयोजन के प्रचार-प्रसार को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई और सहयोग की भावना व्यक्त की।
मुनिश्री शांतिसागर जी महाराज के जीवन पर आधारित है संपूर्ण कार्यक्रम
कार्यक्रम में 6 अक्टूबर को शुरूआत प्रात: 8 बजे मंगलाचरण, चित्र अनावरण दीप प्रज्जवलन के साथ होगी, इसके बाद आचार्य पदारोहण दिवस आचार्य शांतिसागर जी महाराज की संगीतमय महापूजन, शास्त्रदान, परिचर्चा के साथ शुरूआत होकर आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन, श्रीजी वंश परंपरा एवं माता-पिता एवं परिजन, श्रीजी की क्षुल्लक, ऐलक एवं मुनिदीक्षा, मुनिश्री एवं आगमन परम्परा सहित सायं के समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से मुनिश्री शांतिसागर जी महाराज संबंधी वीडियो का प्रदर्शन, नाटिका प्रस्तुति आदि का प्रदर्शन कर मुनिश्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला जाएगा।
7 अक्टूबर को मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज का दीक्षा दिवस गुरू उपकार दिवस के रूप में मनाया जाएगा, यहां मुनिद्वय के पादप्रक्षाल, शास्त्रदान, परिचर्चा का प्रारंभ होगा जिसमें आचार्यश्रीशांतिसागर जी महाराज का उत्तर भारत में विहार, आर्चाश्रीजी के चार्तुमास एवं विशेषताऐं, आचार्य श्रीजी द्वारा प्रदत्त मुनि आर्यिका, क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका दीक्षा का वर्णन, आचार्यश्रीजी की पट्टपरम्परा एवं वर्तमान में प्रमुख संघ पर प्रकाश डाला जाएगा,
8 अक्टूबर को आचार्यश्रीजी के व्रत, त्याग, उपवास आदि का क्रम, आचार्य श्री द्वारा धर्मायतन, ग्रंथसंरक्षण एवं सामाजिक कुरीति उन्मूलन हेतु किए कार्य, आ.श्रीजी का अंतिम उपदेश व विशिष्ट कथन, आचार्यश्री जी की सल्लेखना साधना एवं आचार्य श्रीजी के बारे में शिष्यों एवं विशिष्ट लोगों के विचार एवं संस्मरण होंगें इसके साथ ही 9 अक्टूबर को ही जैसवाल जैन धर्मशाला में वृहद नि:शुल्क स्वास्थ्य भी आयोजित होगा
एवं 9 अक्टूबर को ही पूपू आचार्य श्रीविद्यासागर जी महाराज की संगीतमय महापूजन, आचार्य श्रीशांतिसागर जी महाराज पर हुए उपसर्ग, आचार्यश्री जी के विशेषण एवं उपाधियां, आचार्यश्रीजी की पट्टपरम्परा के वर्तमान पंचम पट्टाधीश श्री आचार्य वर्धमान सागर जी एवं आचार्य श्रीविद्यासागर जी महाराज के व्यक्त्वि एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए अंत में मुनिश्री के प्रवचन होकर कार्यक्रम समापन किया जाएगा। आगामी 6 से 9 अक्टूबर तक होने वाले कार्यक्रम में जैन-अजैन सभी धर्मप्रेमीजनों से अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आह्वान किया गया है।
पहले स्वयं सुधार करें, तब दूसरों को सुधारने का कार्य करें : मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज
धर्म की रक्षा का आह्वान करते हुए वर्तमान परिवेश को लेकर प्रेसवार्ता में मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज ने कहा कि आज व्यक्ति स्वयं को नहीं सुधा रहा बल्कि वह दूसरों को उपदेश देता है, यह नहीं होना चाहिए बल्कि आज की शुरूआत व्यक्ति को स्वयं से करना होगी जब वह स्वयं सुधार करेगा तो उसका असर उसके परिवार पर पड़ेगा और धर्म-संस्कृति और समाज भी इस मार्ग पर चलकर सुधार करेगा, इसलिए आवश्यकता है कि जब भी कोई अच्छा काम करें तो इसकी शुरूआत स्वयं से की जावे और फिर उसके बाद आगे अन्य भी स्वयं में सुधार करते हुए यह कार्य करेंगें। निश्चित ही आज समय आधुनिकता है जिसमें धर्म-संस्कृति की रक्षा बहुत आवश्यक है और यह तभी संभव होगी जब प्रत्येक व्यक्ति इस कार्य में सुधार की शुरूआत स्वयं से करेगा। मुनिश्री ने अन्य जिज्ञासाओं का समाधान भी प्रेसवार्ता में किया।
पहले स्वयं सुधार करें, तब दूसरों को सुधारने का कार्य करें : मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज
धर्म की रक्षा का आह्वान करते हुए वर्तमान परिवेश को लेकर प्रेसवार्ता में मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज ने कहा कि आज व्यक्ति स्वयं को नहीं सुधा रहा बल्कि वह दूसरों को उपदेश देता है, यह नहीं होना चाहिए बल्कि आज की शुरूआत व्यक्ति को स्वयं से करना होगी जब वह स्वयं सुधार करेगा तो उसका असर उसके परिवार पर पड़ेगा और धर्म-संस्कृति और समाज भी इस मार्ग पर चलकर सुधार करेगा, इसलिए आवश्यकता है कि जब भी कोई अच्छा काम करें तो इसकी शुरूआत स्वयं से की जावे और फिर उसके बाद आगे अन्य भी स्वयं में सुधार करते हुए यह कार्य करेंगें। निश्चित ही आज समय आधुनिकता है जिसमें धर्म-संस्कृति की रक्षा बहुत आवश्यक है और यह तभी संभव होगी जब प्रत्येक व्यक्ति इस कार्य में सुधार की शुरूआत स्वयं से करेगा। मुनिश्री ने अन्य जिज्ञासाओं का समाधान भी प्रेसवार्ता में किया।
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