अपने कुव्यसनों को त्याग कर तपस्वियों की तपस्या का करेें अनुमोदन : आचार्य कुलचंद्र सूरि जीशिवपुरी। जैन धर्म में तपस्या को सबसे बड़ी धर्म आराधना माना जाता है, वहीं तपस्या की अनुमोदना का भी उतना ही महत्व है। तपस्या की अनुमोदना में तपस्वी के लिए आपका सबसे बड़ा उपहार यह है कि आप अपने उन कुव्यसनों को त्यागें। जिनसे आपके अपने, परिवार वाले समाज वाले और नाते रिश्तेदार परेशान हैं कुव्यसन न हों तो तपस्या की अनुमोदना में कोई भी अच्छा पुण्य कार्य करने का संकल्प लें। उक्त प्रेरणास्पद उदगार प्रसिद्ध जैनाचार्य कुलचंद्र सूरि जी महाराज साहब ने आराधना भवन में तपस्वियों के सम्मान समारोह में व्यक्त किए।
इस अवसर पर 50 से अधिक तपस्वियों का सम्मान किया गया। तपस्वियों के सम्मान में नगर के प्रमुख मार्गों से भव्य शाही शोभा यात्रा निकाली गई। जिसमें आचार्य कुलचंद्र सूरि जी महाराज और जैन संतों तथा साध्वियों की गरिमापूर्ण उपस्थिति ने शोभायात्रा में चारचांद लगा दिए। सम्मान समारोह के लाभार्थी सौभाग्यमल, उम्मेद कुमार, विजय कुमार और रवि पारख, राजेश पारख परिवार रहे, जिन्होंने सभी तपस्वियों का जिनमें जैन साध्वियां भी शामिल थीं का बहुमान किया। तपस्वियों ने आचार्य कुलचंद्र सूरि जी और पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी से आर्शीवाद ग्रहण किया। कार्यक्रम का संचालन जैन समाज के सचिव विजय पारख ने किया। इस अवसर पर चार्तुमास कमेटी के संयोजक तेजमल सांखला, उप संयोजक प्रवीण लिगा, मुकेश भांडावत, दशरथमल सांखला सहित समाज के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
आचार्य कुलचंद्र सूरिश्वर जी म.सा. की निश्रा में लगी तपस्या करने की होड़
आचार्य कुलचंद्र सूरि जी की प्रेरणा से श्वेताम्बर जैन समाज में तपस्या करने वालों की होड़ लग गई। साध्वी श्रेयानंदा जी ने 31 उपवास की तपस्या की। जबकि 7 श्रावक और 1 साध्वी भगवंत ने सिद्धी तप की कठोर तपस्या की। जिसमें एक दिन छोड़कर एक उपवास इस तरह से संख्या बढ़ाते हुए 8 उपवास तक पहुंचते हैं। इस कठोर तपस्या में 43 दिन में 36 दिन उपवास और सिर्फ 7 दिन पारणा किया जाता है। सिद्धी तप करने वालों में रजनी नाहटा, निधि गोखरू, शिपरा मुनानी, मधु मुनानी, निधि सांखला आदि हैं। 15 उपवास रीतेश सांखला और श्रावक संजय सकलेचा के सुपुत्र शामिल हैं, 11 उपवास की तपस्या शिल्पी सांड, 9 उपवास की तपस्या धु्रव सांखला और विपिन सांखला ने की। नवकारसी के पश्चात आचार्य जी के नेतृत्व में तपस्वियों की भव्य शोभायात्रा गाजे बाजे और धूमधाम के साथ प्रारंभ हुई। समाधि मंदिर से प्रारंभ हुई शोभायात्रा कस्टम गेट, सदर बाजार, गांधी चौक, माधव चौक, कोर्ट रोड़ होते हुए श्वेताम्बर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पहुंची।
लायन्स क्लब साउथ ने किया तपस्वियों का स्वागत सम्मान
सदर बाजार के पूर्व प्रवेश द्वार पर दीपक इलेक्ट्रीकल्स के सामने लायन्स क्लब शिवपुरी साउथ के द्वारा तपस्वियों का स्वागत करते हुए सम्मान किया गया। यहां लायन्स क्लब साउथ अध्यक्ष राजेश गुप्ता राम, सचिव गिर्राज ओझा, कोषाध्यक्ष दीपेश अग्रवाल सहित दीपक अग्रवाल, माणिक जैन सहित अन्य संस्था पदाधिकारी शामिल रहे जिनके द्वारा शोभायात्रा में शामिल धर्मप्रेमीजनों के लिए पानी की बोतलें वितरित की तो वहीं तपस्वियों के पास पहुंचकर उनका माल्यार्पण करते हुए सम्मान किया गया। इस दौरान मुनिश्रीकुलचन्द्र सूरिश्वरजी एवं कुलदर्शन विजय म.सा. सहित मुनिसंघ की आगवानी भी लायन्स क्लब साउथ के द्वारा की गई।
तप से बड़ी कोई धर्म आराधना नहीं : संत कुलदर्शन
तपस्वियों के सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि भगवान महावीर के धर्म में तप से बड़ी कोई आराधना नहीं है। उनके संघ में 36 हजार साध्वियां और 14 हजार साधु थे। लेकिन उन्होंने तप आराधना को अपनी साधना का लक्ष्य बनाने के कारण संत धन्ना अंगकार को सर्वश्रेष्ठ साधक निरूपित किया। उन्होंने कहा कि चाहे दान कर लो, क्षमा मांग लो या कोई भी धर्म आराधना कर लो, सब में कर्मों का बंध होता है। लेकिन तपस्या में कर्मों की निर्जरा होती है। कर्म कट जाने के बाद ही मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि तपस्या अंतरतम में होश का दीया जलाने का माध्यम है।
आचार्य कुलचंद्र सूरिश्वर जी म.सा. की निश्रा में लगी तपस्या करने की होड़
आचार्य कुलचंद्र सूरि जी की प्रेरणा से श्वेताम्बर जैन समाज में तपस्या करने वालों की होड़ लग गई। साध्वी श्रेयानंदा जी ने 31 उपवास की तपस्या की। जबकि 7 श्रावक और 1 साध्वी भगवंत ने सिद्धी तप की कठोर तपस्या की। जिसमें एक दिन छोड़कर एक उपवास इस तरह से संख्या बढ़ाते हुए 8 उपवास तक पहुंचते हैं। इस कठोर तपस्या में 43 दिन में 36 दिन उपवास और सिर्फ 7 दिन पारणा किया जाता है। सिद्धी तप करने वालों में रजनी नाहटा, निधि गोखरू, शिपरा मुनानी, मधु मुनानी, निधि सांखला आदि हैं। 15 उपवास रीतेश सांखला और श्रावक संजय सकलेचा के सुपुत्र शामिल हैं, 11 उपवास की तपस्या शिल्पी सांड, 9 उपवास की तपस्या धु्रव सांखला और विपिन सांखला ने की। नवकारसी के पश्चात आचार्य जी के नेतृत्व में तपस्वियों की भव्य शोभायात्रा गाजे बाजे और धूमधाम के साथ प्रारंभ हुई। समाधि मंदिर से प्रारंभ हुई शोभायात्रा कस्टम गेट, सदर बाजार, गांधी चौक, माधव चौक, कोर्ट रोड़ होते हुए श्वेताम्बर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पहुंची।
लायन्स क्लब साउथ ने किया तपस्वियों का स्वागत सम्मान
सदर बाजार के पूर्व प्रवेश द्वार पर दीपक इलेक्ट्रीकल्स के सामने लायन्स क्लब शिवपुरी साउथ के द्वारा तपस्वियों का स्वागत करते हुए सम्मान किया गया। यहां लायन्स क्लब साउथ अध्यक्ष राजेश गुप्ता राम, सचिव गिर्राज ओझा, कोषाध्यक्ष दीपेश अग्रवाल सहित दीपक अग्रवाल, माणिक जैन सहित अन्य संस्था पदाधिकारी शामिल रहे जिनके द्वारा शोभायात्रा में शामिल धर्मप्रेमीजनों के लिए पानी की बोतलें वितरित की तो वहीं तपस्वियों के पास पहुंचकर उनका माल्यार्पण करते हुए सम्मान किया गया। इस दौरान मुनिश्रीकुलचन्द्र सूरिश्वरजी एवं कुलदर्शन विजय म.सा. सहित मुनिसंघ की आगवानी भी लायन्स क्लब साउथ के द्वारा की गई।
तप से बड़ी कोई धर्म आराधना नहीं : संत कुलदर्शन
तपस्वियों के सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि भगवान महावीर के धर्म में तप से बड़ी कोई आराधना नहीं है। उनके संघ में 36 हजार साध्वियां और 14 हजार साधु थे। लेकिन उन्होंने तप आराधना को अपनी साधना का लक्ष्य बनाने के कारण संत धन्ना अंगकार को सर्वश्रेष्ठ साधक निरूपित किया। उन्होंने कहा कि चाहे दान कर लो, क्षमा मांग लो या कोई भी धर्म आराधना कर लो, सब में कर्मों का बंध होता है। लेकिन तपस्या में कर्मों की निर्जरा होती है। कर्म कट जाने के बाद ही मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि तपस्या अंतरतम में होश का दीया जलाने का माध्यम है।
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