दिगंबर जैन छत्री मंदिर पर आयोजित धर्मसभा में बड़ों के सम्मान और लोक मूढ़ता को लेकर महाराजश्री ने दिए आर्शीवाचनशिवपुरी-जिस प्रकार से श्रद्धालुजनों भक्तिभाव से अपनी आस्थाओं के अनुरूप मुनियों का सम्मान करते है ठीक उसी प्रकर से मुनियों के साथ चलने वाले क्षुल्लक का भी सम्मान करना चाहिए, हमेशा ध्यान रखें बड़ों का आदर और छोटों का अभिवादन कभी भूलना नहीं चाहिए, यह संस्कार की नींव होती है जिन शासन हमें सीख देता है कि हमें हमेशा अपने बड़ों का आदर करें और उनके बताए मार्ग पर चलें, जैसे मुनिगण अपने शिष्यों को आर्शीवाद देकर कल्याण करते है ठीक उसी प्रकार से क्षुल्लक भी होते है जो मुनिश्री के पदचिह्नों पर चलकर मुनिश्री के मार्ग की ओर अग्रसर होते है इसलिए जैन श्रावक हमेशा मुनियों के साथ क्षुल्लक का सम्मान करना कभी ना भूलें। बड़ों के आदर के साथ श्रावकों को मुनियों व क्षुल्लक के सम्मान का यह आभास करा रहे थे मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज जो इन दिनों शिवपुरी जिला मुख्यालय स्थित दिगम्बर छत्री मंदिर में मनाए जा रहे चार्तुमास प्रवास के दौरान आर्शीवचन दे रहे थे। इसके साथ ही यहां मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने कई लोक मूढ़ताओं से भी बचकर रहने की बात कही साथ ही उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से लोक मूढ़ता पर विस्तृत प्रकाश डाला। कार्यक्रम में मंगलाचरण समाजसेवी रामदया जैन के द्वारा जबकि दीप प्रज्जवलन ऋषभ कुमार जैन सिरसौद वाले व भण्डारी आमोल वालों के द्वारा किया गया।
तोरण मारना भी है हिंसा का प्रतीक
मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने कहा कि प्रवास के दौरान जब राजस्थान गए हुए थे तब वहां मारबाड़ी समाज में देखा कि एक परंपरा के तहत तोरण मारा जाता है यह तोरण मारना हिंसा का प्रतीक है, क्योंकि इसमें मारना शब्द आया है और जिसे मारा जाता है वह हिंसा ही होती है। इसके साथ ही मुनिश्री ने बताया कि अक्सर दुकानदार हो या कोई व्यावसाई वह अपने प्रतिष्ठान पर जाकर भले ही ताला-खोलते या लगाते समय लक्ष्मी का ध्यान करें और फिर गल्ला खोलकर आगरबत्ती जलाकर उसे धूप दिखाते हुए लक्ष्मी को प्राप्त करने की अभिलाषा करें तो यह व्यर्थ है क्योकि यह भी एक परंपरा का ही हिस्सा है जिसे अभी तक लोग मान रहे है यदि लक्ष्मी को प्राप्त ही करना है तो भक्ति करें, निश्चित रूप से भक्तिभाव से की गई भक्ति ही लक्ष्मी और शक्ति दोनों ही प्रदान करेंगी। मुनिश्री ने इस तरह अनेकों कई उदाहरणों को भी लोक मूढ़ता के रूप में बताया और इनसे रहित होने का आह्वान किया।
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