शिवपुरी- आपसी परिचत होने के चलते परिवादी से अभियुक्त के द्वारा बतौर उधार ऋण की राशि 2 लाख रूपये लिए जाने के बाद भी वापिस नहीं की गई। जिसे लेकर धारा 138 के तहत परिवादी ने मामले को लेकर अपने अधिवक्ता दीपक भार्गव के माध्यम से माननीय न्यायालय अमित प्रताप सिंह न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, शिवपुरी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराई है जिस पर माननीय न्यायालय के द्वारा अभियुक्त को 2 वर्ष के कारावास सहित राशि 3 लाख रूपये अदा करने के निर्देश दिए गए है।विवरण इस प्रकार हैकि परिवादी शिव कुमार पुत्र भगवानस्वरूप अवस्थी व्यवसाय शासकीय सेवा, निवासी वर्मा कॉलोनी शिवपुरी ने अपने परिचित होने के चलते अभियुक्त शिवनंदन पुत्र जगदीश प्रसाद शर्मा व्यवसाय प्रायवेट नौकरी निवासी गायत्री कॉलोनी, शिवपुरी को बतौर उधार ऋण राशि 2 लाख रूपये दी थी। यहां परिवादी शिव कुमार को अभियुक्त शिवनंदन के द्वारा उक्त उधार की राशि चुकाने के लिए एचडीएफसी बैंक शाखा शिवपुरी का चेक क्रं.120912 दिनांक 05.10.2016 को राशि 1 लाख रूपये का दिया जो अभियुक्त के खाते से अपर्याप्त राशि होने के कारण बिना भुगतान के ही वापस हो गया और विधिक नोटिस जारी होने के बाद भी अभियुक्त ने उक्त राशि का भुगतान नहीं किया।
1-1 लाख रूपये की यह राशि बीती 5 सितम्बर 2016 व 5 अक्टूबर 2016 को दिया जिसे परिवादी ने 17.10.2016 को लुकवासा स्थित अपने एसबीआई बैंक खाते में राशि प्राप्त करने हेतु चैक लगया तो वह बाउंस हो गया और बैंक के द्वारा परिवादी को 01.12.2016 को भुगतान तो नहीं मिला लेकिन जमाशुदा चैक खते में पर्याप्त राशि न होने की टीम के साथ बिना भुगतान के ही परिवादी को प्राप्त होकर दिनांक 28.10.2016 को अनादरित हो गए और उसे मूल चेक व रिटर्न मैमो दिनांक 01.12.2016 को वापस कर दिए। तब परिवादी ने अपने अभिभाषक दीपक भार्गव के माध्यम से सूचना पत्र के जरिए रजिस्टर्ड डाक द्वारा दिनांक 28.12.2016 को भेजा जिसे अभियुक्त द्वारा जान बूझकर नहीं लिया गया और उक्त सूचना पत्र परिवादी को दिनांक 30.12.2016 को वापस प्राप्त हो गया। ऐसे में अभियुक्त के द्वारा परिवादी को जान बूझकर आर्थिक क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया
तब माननीय न्यायालय की शरण परिवादी के द्वारा दी गई। जिस पर प्रकरण विवेचना उपरांत माननीय न्यायालय अमित प्रताप सिंह न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, शिवपुरी के द्वारा आरोपी शिवनंदन शर्मा को धार 138 के तहत दोषी पाते हुए 02 वर्ष तक के कारावास की सजा से दण्डित किया साथ ही 6 माह का साधारण कारावास एवं द.प्र.सं.की धारा 357(3) के अंतर्गत प्रतिकर स्वरूप चेक अवधि को दृष्टिगत रखते हुए 3 लाख रूपये की राशि अधिरोपित किए जाने के निर्देश दिए है यह राशि अदा ना करने पर परिवादी को 2 माह का अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतानी होगी।
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