-चातुर्मास का हुआ शुभारंभ, संतों ने कहा- सत्संग, श्रद्धा और साधना के पथ पर चलकर चातुर्मास को बनाएं सार्थक
शिवपुरी। चातुर्मास के पूरे चार माह में धर्म के लिए बहुत अनुकूल वातावरण रहता है। जैन धर्म हो या हिन्दू धर्म, सिक्ख धर्म या मुस्लिम अथवा ईसाई धर्म सभी धर्मों में चातुर्मास को धर्म के लिए अपार संभावना वाला काल माना गया है। चातुर्मास जीवन को बदलने और स्वयं को जानने का अवसर देता है। उक्त उद्गार चातुर्मास के शुभारंभ अवसर पर शिवपुरी में अपने गुरू आचार्यश्री कुलचंद्र सूरि जी म.सा. के साथ चातुर्मास कर रहे पंन्यास प्रवर श्री कुलदर्शन श्रीजी म.सा. ने आराधना भवन में आयोजित एक विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए।
धर्मसभा में मुनिश्री कुलरक्षित श्रीजी और नवोदित मुनि श्री कुलधर्म श्रीजी और पूज्य साध्वी शासन रत्ना श्रीजी ठाणा 6 महासतियां भी उपस्थित थीं। इस अवसर पर संतों ने चातुर्मास काल में आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए कहा कि चातुर्मास में धर्म आराधना, व्रत, उपवास, तपस्या, जाप आदि कर वह अपने जीवन को सार्थक करें।
कुलगुरू विजयधर्म सूरि जी म.सा. की प्रतिमा को नमन करने के बाद पंन्यास प्रवर कुलदर्शन श्रीजी ने काफी विस्तार से संन्यास की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इंसान वही होता है जो अपने अस्तित्व से परिचित होता है। अपने आपको पहचान लेता है। हम में से अधिकांश लोग जन्म लेते हैं और मरण का शिकार हो जाते हैं, लेकिन खुद को नहीं पहचान पाते। जबकि चातुर्मास स्वयं को जानने का एक अवसर देता है।
चातुर्मास को सार्थक बनाने के लिए आवश्यक है कि सत्संग से हमारा जुड़ाव हो, ईश्वर, गुरू और धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा हो और साधना के पथ पर चलने का संकल्प हो। साधना क्या है इसे भी पंन्यास प्रवर कुलदर्शन श्रीजी ने स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि शरीर की साधना सरल है, लेकिन मन की साधना कठिन है और साधना में हमें शरीर और मन दोनों की साधना करनी चाहिए। कषायों का त्याग कर हम मन की साधना कर सकते हैं।
ईश्वर के प्रति मन में हो अनुग्रह का भाव
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन श्रीजी म.सा. ने अपने प्रेरक उद्बोधन में बताया कि स्वयं को जानने के लिए मन में कुछ सवाल उठना चाहिए और उनके उत्तर भी खोजे जाने चाहिए। मनुष्य जन्म एक बड़ी उपलब्धि है। आप चाहें तो इस योनि का उपयोग कर पतन के रास्ते पर अग्रसर होकर पशु योनि भी प्राप्त कर सकते हैं और चाहें तो उन्नति कर मोक्ष मार्ग भी प्राप्त कर सकते हैं। इंसान के रूप में जन्म लेने के लिए ईश्वर के प्रति एक अनुग्रह का भाव होना चाहिए। खुद का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व की साढ़े सात करोड़ जनसंख्या में हम सहित कुल साढ़े 14 हजार व्यक्तियों को ईश्वर की कृपा से हाथ में रजोहरण मिला है। आप अपने जीवन पर भी दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि आपकी पात्रता और योग्यता से भी अधिक भगवान ने आपको दिया है।
शरीर के अंगों का उपयोग भी हमें मालूम होना चाहिए
संत श्री कुलदर्शन श्रीजी ने कहा कि ईश्वर ने हमें आंखें भगवान के रूप को निहारने के लिए दीं हैं ना कि कुत्सित दृष्टि डालने के लिए, पैर मंदिरों और तीर्थों के दर्शन के लिए दिए हैं, हाथ लोगों की सेवा और ईश्वर की पूजा के लिए दिए हैं जो भी ईश्वर ने आपको दिया है उसका सार्थक उपयोग इस चातुर्मास से प्रारंभ करें।
मृत्यु को सुधारना है तो जीवन को सुधारें
संत कुलदर्शन श्रीजी ने कहा कि हमारी मृत्यु तब ही सुधर सकती हैं जब हम अपने जीवन को सुधारें। अन्यथा अंतिम समय में वासनाएं, कामनाएं, पाप और कुकर्म हमारी मृत्यु को सुधारने वाले नहीं, बल्कि बिगाडऩे वाले होंगे। जीवन में धन का सदुपयोग करो। उन्होंने अपने गुरू के हवाले से बताया कि वह कहते थे कि धन या तो दूसरों को देकर जाओ या फिर अंतिम समय में रोते-रोते छोड़कर जाओ। अब यह आपको फैसला करना है कि धन का क्या उपयोग करना है।
ईश्वर के प्रति मन में हो अनुग्रह का भाव
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन श्रीजी म.सा. ने अपने प्रेरक उद्बोधन में बताया कि स्वयं को जानने के लिए मन में कुछ सवाल उठना चाहिए और उनके उत्तर भी खोजे जाने चाहिए। मनुष्य जन्म एक बड़ी उपलब्धि है। आप चाहें तो इस योनि का उपयोग कर पतन के रास्ते पर अग्रसर होकर पशु योनि भी प्राप्त कर सकते हैं और चाहें तो उन्नति कर मोक्ष मार्ग भी प्राप्त कर सकते हैं। इंसान के रूप में जन्म लेने के लिए ईश्वर के प्रति एक अनुग्रह का भाव होना चाहिए। खुद का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व की साढ़े सात करोड़ जनसंख्या में हम सहित कुल साढ़े 14 हजार व्यक्तियों को ईश्वर की कृपा से हाथ में रजोहरण मिला है। आप अपने जीवन पर भी दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि आपकी पात्रता और योग्यता से भी अधिक भगवान ने आपको दिया है।
शरीर के अंगों का उपयोग भी हमें मालूम होना चाहिए
संत श्री कुलदर्शन श्रीजी ने कहा कि ईश्वर ने हमें आंखें भगवान के रूप को निहारने के लिए दीं हैं ना कि कुत्सित दृष्टि डालने के लिए, पैर मंदिरों और तीर्थों के दर्शन के लिए दिए हैं, हाथ लोगों की सेवा और ईश्वर की पूजा के लिए दिए हैं जो भी ईश्वर ने आपको दिया है उसका सार्थक उपयोग इस चातुर्मास से प्रारंभ करें।
मृत्यु को सुधारना है तो जीवन को सुधारें
संत कुलदर्शन श्रीजी ने कहा कि हमारी मृत्यु तब ही सुधर सकती हैं जब हम अपने जीवन को सुधारें। अन्यथा अंतिम समय में वासनाएं, कामनाएं, पाप और कुकर्म हमारी मृत्यु को सुधारने वाले नहीं, बल्कि बिगाडऩे वाले होंगे। जीवन में धन का सदुपयोग करो। उन्होंने अपने गुरू के हवाले से बताया कि वह कहते थे कि धन या तो दूसरों को देकर जाओ या फिर अंतिम समय में रोते-रोते छोड़कर जाओ। अब यह आपको फैसला करना है कि धन का क्या उपयोग करना है।
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