निजी स्कूलों में मासूमों के जीवन से शिक्षा के नाम पर हो रहा सरेआम खिलवाड़!शिवपुरी- हरेक माता-पिता का अरमान होता है कि उसका बच्चा अच्छे से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और इसे लेकर वह अधिकांशत: शासकीय विद्यालयों को दरकिनार कर निजी विद्यालयों की ओर रूख करता है लेकिन यह क्या इन मासूमों के बोझ को वर्तमान समय में निजी स्कूलों की शिक्षा के रूप में उसके बचपन को बोझ तले दबाया जा रहा है। बचपन के इस दौर में इन मासूमों को नर्सरी से लेकर कक्षा 5वीं तक के वह विद्यार्थी ना तो अपनी पूरी नींद कर पा रहे और ना ही उन्हें खेलने-कूदने का समय मिल पा रहा है, क्योंकि अल सुबह 7 बजे से लेकर दोप. 2 बजे तक यह मासूम अपने भविष्य को संवारने के लिए निजी स्कूलों की दहलीज और परिसर में रहते और शेष बचे हुए समय में जब दोपहर के वक्त घर पहुंचते है तो यहां उन्हें खाना-खाने के बाद होमवर्क की चिंता भले ही बच्चों को ना हो लेकिन अभिभावकों को रहती है ऐसे में स्कूल के बाद अब होमवर्क उसके बाद खेलने का समय ही नहीं रहता और ट्यूशन जैसी व्यवस्थाओं में भी कई बच्चे अपना बचपन इसी तरह गंवाने को मजबूर है।
बस्ते के बोझ तले दबा बचपन
हालांकि इन मासूमों को राहत देने की व्यवस्था निजी स्कूलों की होना चाहिए क्योंकि नर्सरी से लेकर 5वीं तक के अधिकांश बच्चों को आवश्यक पुस्तकों के साथ ही विद्यालय में बुलाया लेकिन देखने में आया है कि नर्सरी से लेकर 5वीं तक के यह सभी बच्चे अपने शरीर पर ही बस्ते के रूप में कम से 10 से 25 किलो तक के वजन से अपने बचपन को बोझ तले दबाने को मजबूर है। बताया जाता है कि एक ही किताब में चार-चार विषयों से सुसज्जित पुस्तकें भी निजी विद्यालयो में संचालित होती है जिससे यह बोझा कम किया जा सकता है लेकिन शिवपुरी शहर के अधिकांश निजी विद्यालयों में ऐसी कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिल रही और मासूमों का बचपन बस्ते के बोझ से ही दबा जा रहा है।
पूरी नहीं हो पा रही नींद, अधमने से पहुंचते है स्कूल
जब एक ओर चिकित्सक लोगों के लिए काम करने के 16 घंटे और आराम करने के लिए 8 घंटे की नींद लेने की सलाह देते है तब ख्याल आता है कि वह मासूम बच्चे जो निजी स्कूलों में अध्ययन करते हुए अपनी नींद ही पूरी नहीं कर पाते, क्योंकि बच्चों की नींद तो उम्र के हिसाब से ही अधिक होती है ऐसे में उन्हें सुबह 6 बजे उठाने से लेकर 7 बजे तक तैयार करना और फिर स्कूल बस में भेजना इसके बाद भी अधमने मन से स्कूलों में पहुंचकर बच्चों का पढऩा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। कई बच्चों को सुबह जगाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती और यदि उठ भी जाए तो वह फिर से सो जाते है ऐसे में बच्चों की नींद भी पूरी ना होने के बाद वह शिक्षा तो ले रहे है लेकिन इसे कैसे ग्रहण करेंगें यह समझ से परे है?
क्या कोई उठाएगा इन मासूमों के अधिकारों को लेकर कदम
कहा जाता है कि जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों...यह कोई गीत या कहावत नहीं लेकिन यह लाईनें आज उन मासूमों पर सटीक बैठ रही है जो भले ही बोल नहीं पा रहे लेकिन उनके हालातों को लेकर क्या कोई उठाएगा इन मासूमों के अधिकारों को लेकर कदम यह चर्चा हो रही है। बच्चों का अपना जीवन होता है लेकिन इस बचपन को किस तरह से निजी स्कूलों में बंद किया जा रहा है यह किसी से दबा-छुपा नहीं है अधिकांश अभिभावक इस बात को भली-भांति समझते है कि वह ऐसे हालातों में बच्चों के साथ अब करें भी तो क्यों, क्योंकि उन्हें अच्छी शिक्षा देना है तो निजी स्कूलों की ओर रूख करते है लेकिन यहां पढ़ाते है तो उनका बचपन पूरा इस उधेड़बुन में चला जाता है कि सुबह से लेकर दोपहर और फिर देर सायं से रात्रि तक यह बचपन अपने अधिकारों से दूर होकर यूं ही चला जा रहा है। ऐसे में जागरूक लोगों को इस ओर ध्यान देकर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। देखना होगा कि इन मासूमों की सुध कौन लेगा?
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