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Monday, July 18, 2022

आकांक्षाएं, आसक्ति और अहंकार पर नियंत्रण नहीं रखा तो धन बनेगा विनाश का कारण : संत कुलदर्शन


कोर्ट रोड़ स्थित आराधना भवन में विशाल धर्मसभा में मुनिश्री ने बताई जीवन जीने की परिभाषा

शिवपुरी। धन की संपदा आणविक ऊर्जा (एटोमिक एनर्जी) की तरह है। यदि इसका सही तरह से उपयोग करना न आया तो यह ऊर्जा विनाश का कारण बन जाती है। धन सम्पत्ति आने से स्वयंमेव आकांक्षाएं, आसक्ति और अहंकार जैसी बुराईयां बढ़ती हैं। वहीं उससे व्यक्ति ईश्वर से विमुख होता है, उसकी संवेदना तिरोहित हो जाती हैं और परिवार से उसका अलगाव हो जाता है। अच्छाईयां घटती हैं और बुराईयां बढ़ती हैं, इसलिए धन सम्पत्ति का उपयोग करने का तरीका यदि हमें आया तो जीवन सार्थक बनते देर नहीं लगती है। उक्त वक्तव्य आचार्य श्री कुलचंद्र सूरि जी महाराज साहब के शिष्य रत्न पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी महाराज ने आराधना भवन में आयोजित एक विशाल धर्मसभा में दिया। 

धर्मसभा में जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने यह भी बताया कि इस जिंदगी में हमारे लिए जानने योग्य क्या है, ग्रहण करने योग्य क्या है और छोडऩे योग्य क्या है। धर्मसभा में तपस्वी भाईयों और बहनों का बहुमान किया गया। आचार्य श्री के सानिध्य में अ_म तप, आयम्विल आदि की तपस्या धूमधाम पूर्वक चल रही है। 9 उपवास करने वाली बहन श्रीमति खुशबू भांडावत का इस अवसर पर जैन श्वेताम्बर समाज ने बहुमान किया। अ_म तप करने वाले भाई राजीव नाहटा, शशिकांता गुगलिया और सुधा काष्टया का भी सम्मान हुआ। आयम्विल करने वाली बहन प्रीति कोचेटा, अमर मुनानी आदि का भी सम्मान किया गया।

पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने अपने उदबोधन में धार्मिक गं्रथ धर्म संघ  का जिक्र करते हुए बताया कि उपाध्याय श्री मान विजय जी और यश विजय जी ने जीवन को सार्थक बनाने के उपाय बताते हुए कहा कि इस संसार में तमाम तरह के प्रलोभन हैं, जो हमें जीवन के लक्ष्य से भटकाते हैं। ऐसी स्थिति में अपने आप को नियंत्रित कर प्रलोभन से भागना चाहिए, क्योंकि हमारा मन इतना प्रबल नहीं है कि किसी भी प्रलोभन का उस पर प्रभाव न पड़े। जीवन को पतित होने से बचाना है तो प्रलोभन से भागना होगा। तभी जीवन में धर्म का शंखनाद संभव है। जीवन की सार्थकता के दूसरे उपाय की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि जब भी दुख आए, संकट आए, पीड़ा आए उस विपदा में जागना होगा। यह निश्चित है कि जो कर्म हमने किया है, उसे भुगतना ही होगा और कोई भी शक्ति उससे हमें नहीं बचा सकती।

लेकिन उस विकट स्थिति में जागरण होने से जीवन में समता भाव आएगा और उस समता भाव से कष्ट, पीड़ा और दुख का वह समय आसानी निकल जाएगा। जीवन की सार्थकता का तीसरा सूत्र है कि प्रेम में त्याग की भावना होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति के सुख के लिए अपना सर्वस्व तक त्याग करने की भावना होनी चाहिए और अंतिम सूत्र की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस संसार में सिर्फ हमें परमात्मा से ही मांगना चाहिए और परमात्मा से भी यदि मांगना पड़े तो धन सम्पत्ति, यश आदि क्षणभंगुर वस्तु नहीं बल्कि सन्मति और सदगति की मांग करनी चाहिए। ईश्वर के आगे जो हाथ फैलाता है उसे किसी ओर के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती।

तलाक, आत्महत्या और घरेलू हिंसा का कारण सहनशीलता की कमी
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि पिछले 20-25 सालों में तलाक आत्महत्या और घरेलू हिंसा के मामले लगातार बढ़े हैं। खास बात यह हे कि अधिकतर शिक्षित और बौद्धिक वर्ग में इन बुरी प्रवृतियों ने जोर पकड़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि दिन प्रतिदिन व्यक्ति की सहनशीलता में कमी आती जा रही है। तकलीफों से इंसान घबराकर ये गलत उपाय आजमाता है। उन्होंने कहा कि तकलीफ वो दुधारी तलबार है, जो इंसान को बनाती है, वहीं उसमें तोडऩे की भी साम्र्थय है।

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