डीजेजेएस द्वारा दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसने शिष्यों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर किया गया। हज़ारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में भाग लिया। भक्तिमय दिव्य भजनों की श्रृंखला ने उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ा। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) के विद्वत प्रचारक शिष्यों ने समझाया कि वर्तमान समय में चहुं ओर फैली अशांति का मुख्य कारण है इंसान के विचारों में व्याप्त नकारात्मकता। आज मनुष्य सहनशीलता व धैर्य जैसे गुणों को भी खोता हुआ दिखाई दे रहा है। एक छोटी सी बात भी आज इंसान को इतना व्याकुल कर देती है कि अंततोगत्वा वह जीवन से ही हार मान बैठता है। अवसाद की खाई में गिर जाता है।
आज इंसान सुख और शांति की तलाश में इधर-उधर भाग रहा है। सांसारिक वस्तुएं उसे क्षण-भंगुर सुख तो प्रदान करती हैं परंतु समय के साथ वह फीका पढ़ जाता है। अहम प्रश्न यह है कि क्या सकारात्मकता एवं आनंद का कोई ऐसा चिर स्थाई स्रोत है जो मानस के भीतर से नकारात्मकता एवं दुःख को नष्ट कर सके? हमारे संतों एवं शस्त्रों ने पहले ही इस शाश्वत स्रोत को खोजा हुआ है।
परमहंस योगानंद जी ने एक बार कहा था कि, “मानव जाति उस ‘कुछ और’ की निरंतर खोज में संलग्न है, जिससे उसे पूर्ण एवं अपार सुख प्राप्त होने की आशा है। परंतु वे लोग जिन्होंने ईश्वर को खोजा और पाया है, उनकी यह खोज समाप्त हो गई है। वे जान गए हैं कि वह ‘कुछ और’ केवल और केवल ईश्वर है।” प्रचारक शिष्यों ने इस तथ्य को उजागर किया कि समय के पूर्ण गुरु की कृपा से प्राप्त शाश्वत ज्ञान पर आधारित ध्यान-साधना ही इस नकारात्मकता एवं अवसाद जैसी सार्वभौमिक समस्याओं को जड़ से मिटाने में सक्षम है।
ध्यान के असंख्य लाभों को नज़र में रखते हुए इसका नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए। इसे अपनी जीवनचर्या में एक महत्वपूर्ण अंग बनाने का प्रयास करना चाहिये। भगवान कृष्ण भगवद् गीता में कहते हैं: जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को राख में बदल देती है, उसी प्रकार, हे अर्जुन, ज्ञान की अग्नि कर्मों से उत्पन्न होने वाले समस्त फलों को भस्म कर देती है (अध्याय 4, श्लोक 37)। ध्यान में दिखने वाला प्रकाश, मन के सभी रोगों को जड़ से नष्ट कर देता है। समय के पूर्ण गुरुओं द्वारा सिखाई गई शाश्वत ध्यान विधि हर प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगों और कष्टों से हमारा बचाव करती है।
अंतःकरण में प्रज्वलित ब्रह्मज्ञान की अग्नि, हमारे सभी कर्मों को भस्म कर देती है; कर्म बीज फलित होकर हमें शारीरिक एवं मानसिक यातना देने से पूर्व ही जल कर राख हो जाते हैं। शाश्वत ध्यान विधि का एक और महत्वपूर्ण पक्ष भी है- अहंकार का क्रमशः नष्ट हो जाना, जो हमें हमारी वास्तविक पहचान से दूर रखता है। यह तथ्य समझना जरूरी है कि एक दिन शरीर मिट्टी में मिल जाएगा।
शरीर को दुरुस्त रखने के अनन्य प्रयासों के बाद भी इसे नष्ट होने से नहीं बचाया जा सकता। उस दिन के आने से पहले समय का सदुपयोग करें और अपना ध्यान आत्मा की ओर लगाएं। ऐसा करने से हम चिर स्थाई आनंद और परिपूर्णता का लाभ उठा पाएंगे। सामूहिक ध्यान-साधना के साथ कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन हुआ। उपस्थित भक्तजनों ने प्रेरणादायी प्रवचनों को प्राप्त कर, पूर्ण उत्साह और समर्पण के साथ नियमित ध्यान-साधना के शिव-संकल्प को धारण किया।
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