Responsive Ads Here

Shishukunj

Shishukunj

Tuesday, December 21, 2021

जीवन में संयम धारण करने वाले होते है सही संत : अरविंद जी महाराज



अग्रवाल(गर्ग) परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में कपिलमुन प्रसंग के साथ बताई संतों की महिमा

शिवपुरी-अक्सर कहा जाता है कि असली और नकली संत कौन होते है लेकिन बता दें कि संत कोई नकली नहीं होता बल्कि संतों की पहचान करना है तो उसके आचरण से पहचान की जा सकती है संत वही होते है जिनमें संयम शक्ति, संयम धारण करने की क्षमता होती है, संत की पहचान करना है तो समझें कि वह सभी पर दया करने वाले हो, सभी में प्रभु को देखें, शांत स्वभाव हो ऐसे चित्त होने वाले ही सच्चे संत होते है। संत की यह महिमा और उसकी पहचान की जिज्ञासा का समाधान किया प्रसिद्ध संत शिरोमणी राष्ट्रीय कथा व्यास श्री अरविन्द जी महाराज ने जो स्थानीय जल मंदिर मैरिज हाउस में कथा आयोजक हरगोविन्द अग्रवाल, पुरूषोत्तम अग्रवाल, अनिल अग्रवाल परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर आयोजित कथा प्रसंग के माध्यम से उपस्थित श्रद्धालुजनों को आर्शीवचन से सुशोभित कर रहे थे। 

इस अवसर पर सर्वप्रथम आयोजक अग्रवाल (गर्ग) परिवार के द्वारा श्रीमद् भागवत का पूजन किया गया तत्पश्चात अरविन्द जी महाराज का पूजन कर कथा प्रसं का श्रवण श्रद्धालुओं के लिए किया गया। तृतीय दिवस की कथा में सर्वप्रथम कपिल मुनि उपाख्यान का वाचन किया गया जिसमें साधु-संतों की पहचान के बारे में अरविन्द जी महाराज ने बताया साथ ही उन्होंने प्रभुजी स्मरण की कथा का वृतान्त भी विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से सुनाया। 

यहां अरविन्द जी महाराज ने कहा कि हरेक महिला-पुरूष को अपना जीवन में मुस्कुराते हुए जीना चाहिए, प्रयास करें कि हमारा कोई शत्रु ना हो और ना ही कोई हमारा शत्रु बने, भगवान को प्राप्त करने का साधन है कथा, इसलिए ठाकुरजी का स्मरण करे, जब भी सुबह बिस्तर पर उठ जाए तो मन से ही प्रभु ध्यान करे उनका आह्वान करें। कथा में सुखदेव भगवान भी कहते है कि ऐसे भक्त प्रभु को बहुत प्यारे है जो उन्हें सच्चे मन से समरण करते है वह प्रभु के प्रिय होते है। 

जीव जन्म को लेकर अरविन्द जी महाराज ने कहा कि गर्भ में जीव की स्तुति 01 माह से होती है और 03 माह बाद गर्भ की पहचान में वह होता है, 6वे माह में खाता है, 7वे में प्रभु की माया को प्रणाम करता है और  8वे में रोता है, 9वे माह में पूर्व जन्म का स्मरण होकर प्रसव के रुप मे जन्म होता है, जब भी बच्चे जब जन्म लेते है तो वह प्रभु का भजन करने के लिए आते है लेकिन जन्म के बाद वह सर्वप्रथम हथेली खोलता है और बाद में अंगूठा दिखाता है, बाहर आकर जीव सब भूल जाता है। इसलिए ऐसा ना करें और अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रभु का स्मरण करें। कथा में उपस्थित श्रद्धालु विभिन्न प्रसंगों पर सुमधुर भजनों पर नृत्य कर ईश्वर भक्ति करते हुए नजर आ रहे है।

No comments:

Post a Comment