गोवर्धन पूजा के साथ श्रीकृष्ण और रुकमणी का विवाह की अमृत वर्षा का श्रद्धालुओं ने किया रसपानशिवपुरी-विवाह कोई तीज-त्यौहार नहीं है लेकिन यह भारतीय संस्कृति में अमिट प्रेम का प्रतीक है श्रीमद् भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह का प्रसंग हमें सांसरिक जीवन से अवगत कराता है कि मनुष्य का विवाह एक संस्कार की भांति हुआ है इसलिए नर और नारी एक-दूसरे के पूरक है दोनों का सम्मान करना हरेक पति-पत्नि का धर्म है
आज देखने को मिलता है कि ना-ना प्रकार से घर-परिवार में पति-पत्नि के आपसी झगड़े होते है इसके लिए कोई और नहीं बल्कि हमारे गुण और दोष जिम्मेदार है इसलिए एक-दूसरे को सम्मान देना सीखें, समझें और विश्वास करें, क्योंकि यही विश्वास की डोर वैवाहिक जीवन को सफल बनाएगी।
विवाह की इस रस्म और सांसरिक प्राणियों को सीख दे रहे थे राष्ट्रीय संत शिरोमणी अरविन्द जी महाराज जो स्थानीय जल मंदिर मैरिज हाउस में अग्रवाल(गर्ग) परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण और रुकमणी का विवाह की अमृत वर्षा का श्रद्धालुओं को रसपान करा रहे थे। इस अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा के दौरान बीच में सुंदर.सुंदर झांकियां भी दर्शन करने को मिली।
यहां सर्वप्रथम कथा के मुख्य यजमान हरगोविन्द, पुरूषोत्तम व अनिल अग्रवाल सहित कथा यजमान शहर कांग्रेस अध्यक्ष मोहित अग्रवाल, तरूण अग्रवाल आदि के द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का पूजन किया गया साथ ही कथा में गोवर्धन पूजा की पूजा भी परिजनों के द्वारा की गई और उसका प्रसाद उपस्थित श्रद्धालुजनों में वितरित किया गया। कथा के छठवें चरण में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य महारास लीला का वर्णन किया।
यहां अरविन्द जी महाराज ने कहा कि भगवान की महारास लीला इतनी दिव्य है कि स्वयं भोलेनाथ उनके बाल रूप के दर्शन करने के लिए गोकुल पहुंच गए। यहां गोपियों की व्यथा को बताते हुए कहा गया कि जब भगवान श्रीकृष्ण मथुरा जाने लगे तब समस्त ब्रज की गोपियां भगवान कृष्ण के रथ के आगे खड़ी हो गईं। कहने लगी हे कन्हैया जब आपको हमें छोड़कर ही जाना था तो हम से प्रेम क्यों किया। कथा में गोपी उद्धव संवाद श्रीकृष्ण एवं रुकमणी विवाह उत्सव पर मनोहर झांकी प्रस्तुत की गई।
इस दौरान यहां श्रद्धालुओं के द्वारा गोवर्धन पूजा, महारास, श्रीकृष्ण-रूकमणी विवाह, छप्पन भोग आदि का प्रसाद व विभिन्न लीलाऐं श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग में देखने और श्रवण करने को मिली।
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