ठाकुरबाबा मंदिर प्रांगण में श्रीमद् भागवत कथा में बताया ध्रुव कथा का महत्वशिवपुरी-श्री ठाकुर बाबा मंदिर हाथीखाना पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर वालयोगी नंदिनी भार्गव ने ध्रुव चरित्र, भरत चरित्र, सती चरित्र, पर वडे ही ज्ञानमई वाणी से प्रसंग सुनाकर भक्तों को कथा का श्रवण कराया। उन्होंने कहा कि भगवान के नाम मै ही भगवान का स्वरूप प्रकट करने की शक्ति है। संत तुकाराम, विठ्ठल हरि नाम रटते हुये पांडुरंग हो गये। ध्रुव ने भी परमात्मा का नाम रटा और ध्रुव की भक्ति से पृथ्वी पर जो भार उत्पन्न हुआ वो पृथ्वी सहन नहीं कर सकी। जब बड़े-बडे देवर्षियो ने परमात्मा से प्रार्थना की, कि बालक ध्रुव को दर्शन दो, तो भगवान बोले कि बालक ध्रव को अब मै क्या दर्शन दूं, मेरा स्वरूप उसके हृदय मैं प्रकट हो गया है वो मेरा सतत दर्शन कर रहा है, अब तो बालक को देखने की इच्छा हो रही है, धु्रव मेरा ही बालक है।
भगवान की ही कृपा से छत्तीस हजार वर्ष तक राज करने का आर्शीवाद और फिर वैकुंठ धाम साथ ले जाने की कृपा भी हुई। भरत चरित्र की महिमा के वर्णन में कहा कि पूर्व जन्म का किया हुआ तप कभी निष्फल नहीं होता, भरत जी के सत्संग से परमात्मा का ज्ञान पाकर राजर्शि रहुगण ने भी अंतरूकरण मैं अविद्धा वश आरोपित देहात्म वुद्धि को त्याग दिया था। मनुष्य जन्म सभी पुरुस्वार्थो का साधन है। यह मानव शरीर श्रीहरि सेवा, नारायण का नाम गायन करने मिला है। मनुष्य को यह शुभ संकल्प नर से नारायण बना सकता है।
सती चरित्र पर भी कथा का बड़े ही रोचक श्रवण कराते हुए कहा कि आदि गुरु शंकर की पत्नी होने के बाद भी उन्हें राम के प्रति संशय हुआ, राम की परीक्षा लेने के चलते सती ने सीता का रुप तो वना लिया किंतु स्वरूप सीता जैसा और आचरण सीता सा नहीं बना पाई, किसी का रुप बनाना सरल है और किंतु स्वरूप और आचरण बनाना कठिन है, स्वरूप तो निजी है, अत: हमें किसी का रूप लेकर पाखंड नहीं, स्वरूप पैदा कर अखंडता के लिये प्रयत्न करना चाहिए। ठाकुर बाबा मंदिर पर सारे शहर से धार्मिक भक्त रसिक श्रोता और यजमान मणी महाराज को चाहने वाले, कथा का अमृत मयी रसपान करने पहुंच रहे हैं।
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