शिवपुरी-छतनारा की नई श्रंखला संवाद के अंतर्गत पहला कार्यक्रम आज ऑनलाईन सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में कवि रक्षा दुबे को उनके पहले कविता संग्रह 'सहसा कुछ नहीं होताÓ पर चर्चा एवं कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम में सूत्रधार की भूमिका में निशांत ने निभाई। संवाद की परिकल्पना कुछ इस तरह से की गई है जहाँ विभिन्न कला माध्यमों से जुड़े कलाकारों को आमंत्रित कर उनका युवा श्रोताओं एवं नए कलाकारों से बातचीत कराई जा सके। युवा अपने प्रश्न पूछ सकें और बाकी सुधिजनों की चर्चा को भी सुनते हुए समृद्ध हो पायें।
निशांत ने कार्यक्रम की शुरुआत रक्षा दुबे के परिचय के साथ की और उसके बाद कविता, रचना प्रक्रिया और कविता के क्राफ्ट पर बातचीत शुरू हुई। जब उनसे पूछा गया कि वो एक कवि के तौर पर कैसे निश्चित करती हैं कि कविता का अंत कहाँ पर होना चाहिए, इस पर रक्षा दुबे ने जवाब देते हुए कहा कि इसे हम कभी निश्चित तौर पर कह ही नहीं सकते। हमें जब भी कविता सूझती है या कोई भी विचार आता हैए हम उसका आरंभ बिंदु या अंतिम बिंदु नहीं छू सकते। बहुधा हम उसके मध्य बिंदु को ही स्पर्श कर पाते हैं। और उसके बाद बदलाव की गुंजाइश हमेशा बनी ही रहती है।
90 मिनट के इस सेशन में बातें कविता की रचना प्रक्रिया, क्राफ्ट और उपयोगिता से होती हुईं कविता में आक्रोश के अपरिहार्य होने पर पहुँची। इस विषय पर बात करते हुए रक्षा ने मध्यमार्ग की बात की। कार्यक्रम में युवा कलाकार तो थे ही, साथ ही कई अन्य ख्यात एवं अनुभवी व्यक्तित्व भी उपस्थित थे। इस पूरे कार्यक्रम में जिस तरह का तारतम्य वक्ता, श्रोतागण और सूत्रधार में बनता चला गया, उसका एक अपना जादुई उजाला था। छतनारा लगातार प्रयासरत है कि युवा पीढ़ी के कलाकारों और हमारे बड़ों के बीच में वह एक पुल की भूमिका निभा सके। उसी प्रयास में किये इस नवाचार की पहली कड़ी के आयोजन में सहभागिता करने वाले सभी प्रतिभागियों का अंत मे आभार व्यक्त किया गया।
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