-सीसीएफ़ की 67 वी ई कार्यशाला में बाल साहित्य पर विमर्श -
शिवपुरी- आज के बच्चे दर्शक(व्यूअर्स) औऱ श्रोता ( लिसनर) बनकर रह गए है।हमारी जिम्मेदारी है कि वे अच्छे पाठक यानी रीडर भी बनें ताकि उनके बाल मन में संवेदनाओं का तत्व अंकुरित हो सके।संवेदनशील मन ही परिवार,समाज,राष्ट्र और मानव जाति के लिए हितकर होते हैं।बाल साहित्य बाल मन में संवेदनशीलता का सृजन सुनिश्चित करता है।यह बात आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन एवं राष्ट्रीय सेवा भारती की 67वी वर्चुअल कार्यशाला को संबोधित करते हुए मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे ने कही।इस कार्यशाला को सत्य साईं मिशन से जुड़ी ख्यात बाल गुरु सुश्री रश्मि दीक्षित ने भी संबोधित किया।कार्यशाला में मप्र सहित 19 राज्यों के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
डॉ दवे ने कहा कि आज के दौर में सूचनाओं की बाढ़ जैसी स्थिति है लेकिन आवश्यकता इस बात है कि हम एक बेहतर अभिभावक धर्म का पालन करते हुए सूचना और ज्ञान के भेद को न केवल समझे अपितु इसे परवरिश के आधारस्तंभ के रूप में ध्यान में रखें। उन्होंने कहा कि एक वर्गीकरण सूचना की ग्राह्यता का निर्धारित होना चाहिये कि किस आयु वर्ग को किस स्तर की सूचनाओं की आवश्यकता एवं उपयोगिता है।
डॉ दवे ने कहा कि बाल साहित्य व्यक्ति निर्माण की सबसे बड़ी ताकत है महात्मा गांधी ने बचपन में राजा हरिश्चन्द्र नाटक देखा और वे इसी नाटक से अर्जित संकल्प के बल पर सत्य के पुजारी बन गए।जीजा बाई ने शिवाजी महाराज को राम,कृष्ण के पाठ पढ़ाये तो वह क्षत्रपति कहलाये।उन्होंने जोड़ा की ये महानायक स्वयं अपनी सन्तति में उन संस्कारों एवं संकल्पनाओं को हस्तांतरित नही कर पाए जो उनके माता पिता ने किए थे।नतीजतन गांधी,शिवाजी के उत्तराधिकारियों को हम याद नही करते।
डॉ दवे ने कहा कि जीवन मूल्य का सीधा सबन्ध बाल साहित्य से निराला जैसे महान कवि को उधदृत करते हुए उन्होंने कहा कि निराला यह मानते थे कि कोई भी साहित्य या कला तब तक न तो पूर्ण है और न परिपक्व जब तक वह समावेशी बाल साहित्य का निर्माण नही कर पाती है।उन्होंने आशा जताई कि नवीन शिक्षा नीति के अमल में आते ही भारतबोध से अनुप्राणित मस्तिष्कों का निर्माण भविष्य में होगा।
सत्य सांई मिशन से संबद्ध रश्मि दीक्षित ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि बालकों में मानवीय मूल्यों का विकास बाल साहित्य के साथ सीधा जुड़ा हुआ है।मानवीय मूल्य सत्य,धर्म,अहिंसा,शांति,प्रेम इंसान को पशुत्व से पृथक करते है।बालमन में इन मूल्यों के विकास के साथ ही एक जबाबदेह समाज निर्माण की प्रक्रिया निर्धारित होती है।सुश्री दीक्षित के अनुसार मौजूदा दौर में बच्चों के मामलों में अत्यधिक सजगता की आवश्यकता है क्योंकि आज अनावश्यक एवं अनपेक्षित सूचनाओं के चलते बच्चे भृमित हो रहे है।बच्चों के मामले में अभिभावकों को यह सतर्कता रखनी ही होगी कि उम्र के अनुरूप संवेदनाओं की समझ हम विकसित करने का प्रयास करें।कहानियां,गीत,संगीत,खेल बच्चों में मानवीय मूल्यों का स्थाई भाव के साथ निर्माण करते हैं।
कार्यशाला का संचालन करते हुए फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने बाल साहित्य के सृजन से जुड़े विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया।
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