शिवपुरी - भारतीय सांस्कृतिक उत्थान संस्थान शिवपुरी द्वारा 27 अगस्त को अपने दौर के मशहूर गायक मुकेश की 44 वीं पुण्यतिथि पर अखिल भारतीय स्तर पर ऑनलाइन श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश भर के कई मुकेश फेन्स और गायक कलाकारों ने अपनी आवाज में मुकेश के गाए हुए गानों को रिकॉर्ड करके ऑडियो वीडियो के माध्यम से कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सहमति दी है । नागपुर के नेत्र चिकित्सक डॉ यशपाल लाम्बा, उज्जैन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अनिल दुबे, ऋषिकेश के गोपाल भटनागर, बरेली के राकेश श्रीवास्तव जैसे कई मुकेश फेन्स और संगीत साधक अपनी आवाज के माध्यम से महागायक को ऑनलाइन श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे ।
संस्थान के अध्यक्ष अवधेश सक्सेना, संगीत कार्यक्रम के संचालक अनुपम जैन, राहुल शिवहरे, जहाँगीर खान, मनोज श्रीवास्तव, रानी प्रजापति, कु. आद्या खरे आदि ने अन्य इच्छुक संगीत प्रेमियों से आग्रह किया है कि इस कार्यक्रम में सहभागिता के लिए व्हाट्सअप नम्बर 7999841475 पर अपने नाम नोट करा सकते हैं । संगीत के दीवानों के लिए मुकेश की आवाज़ किसी तोहफ़े से कम नहीं। ‘शो मैन’ राजकपूर की आवाज बन शोहरत की ऊंचाईयां छूने वाले मुकेश आज भी अपने गाये गीतों से चाहने वालों के दिलों पर राज करते हैं।
मुकेश ने एक से बढ़कर एक हिट गीतों को आवाज़ दी है। ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल’ सच आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बोल और उनकी आवाज़ आज भी लाखों, करोड़ों फैंस के होंठों पर गूंजती रहती हैं। 22 जुलाई 1923 को जन्में मुकेश का पूरा नाम मुकेशचंद्र माथुर था। उनके पिता जोरावर चंद्र माथुर पेशे से इंजिनियर थे। मुकेश के 10 भाई-बहन थे जिनमें वो छठे नंबर के थे। मुकेश को बचपन से ही गाने में रुचि थी। मुकेश ने 10वीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और पीडब्लूडी में नौकरी करने लगे थे। बाद में फ़िल्मों के प्रति उनकी दीवानगी ही थी कि मोतीलाल के बुलावे पर वो मुंबई आ गए। यहां आकर अभिनय में असफल होने के बाद वो गायकी में हुनर दिखाने लगे! मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फ़िल्मों के लिए गीत गाए। राज कपूर उन्हें अपनी आत्मा कहते थे। 27 अगस्त 1976 को मुकेश एक शो के लिए अमेरिका गए थे, उसी दौरान वहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।
मुकेश ने साल 1951 में फ़िल्म 'मल्हार' और 1956 में फ़िल्म 'अनुराग' का निर्माण किया था। 'अनुराग', 'माशूका' और ‘निर्दोष’ में उन्होंने बतौर हीरो अभिनय भी किया। हालांकि प्रोड्यूसर बनना उनके लिए बुरा अनुभव रहा क्योंकि उनकी फ़िल्में दर्शकों पर प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो सकीं। इंडस्ट्री में मुकेश के लिए शुरुआती दौर मुश्किलों भरा था। अभिनेता और निर्माता बनने की अपनी इच्छा को छोड़कर मुकेश उसके बाद पूरी तरह से बस गायकी ही करने लगे! उसके बाद शुरू हुआ उनका सुनहरा सफ़र।
50 के दशक से मुकेश को एक पहचान मिलनी शुरू हुई। उन्हें शोमैन राजकपूर की आवाज कहा जाने लगा। बहरहाल, 70 के दशक तक मुकेश उस वक्त के हर बड़े स्टार की आवाज बन गए थे। साल 1970 में मुकेश को मनोज कुमार की फ़िल्म ‘पहचान’ के गीत के लिए दूसरा फिल्मफेयर मिला और फिर 1972 में मनोज कुमार की ही फ़िल्म के गाने के लिए उन्हें तीसरी बार फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। मुकेश तब ज्यादातर कल्याण जी-आंनद जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आरडी बर्मन जैसे बड़े संगीतकारों के साथ ही काम किया करते थे।
साल 1974 में फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ के गाने के लिए मुकेश को नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड दिया गया। साल 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘कभी कभी’ के टाइटल सॉन्ग के लिए मुकेश को अपने करियर का चौथा फिल्मफेयर मिला। मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार पर फिल्माए गए। राज कपूर और मुकेश में काफी अच्छी दोस्ती थी। मुश्किल दौर में राज कपूर और मुकेश हमेशा एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते थे।
मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फ़िल्म के लिए ही गाया था। लेकिन, 1978 में इस फ़िल्म के रिलीज़ से दो साल पहले ही 27 अगस्त को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। स्वर्गीय मुकेश की याद में संगीत प्रेमियों द्वारा आयोजित इस ऑनलाइन कार्यक्रम में उन्हीं के गाए हुए गानों को गाया जाएगा ।
No comments:
Post a Comment