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Monday, October 14, 2019

भगवान गणेश का सामुहिक उत्सव महाराष्ट्र समाज नें शिवपुरी में शुरू किया

50 वर्ष पूर्व ग्वालियर से श्री जी की मूर्ति लाई जाती थी 
शिवपुरी-महाराष्ट्र समाज शिवपुरी के श्री गणेश मंदिर पर 50 वाँ स्थापना स्वर्ण जयंती वर्ष रविवार 13 अक्टूबर को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर सुबह से रात्रि 8 बजे तक विभिन्न कार्यक्रम आयेाजित किये गये। जिसमें प्रभात फेरी, नाट्य रूपांतरण आदि कार्यक्रमों को खूब सराहना मिली। समाज के 50 वर्षों की यात्रा के संदर्भ में समाज के श्रेष्ठजनों लोकपाल श्रीमती शोभा चितले, वही.आर. अभ्यंकर, दिलीप शिधोरे, विनय राहुरीकर, श्रीमती ज्योति बेलसरे, आदि नें कहा कि शिवपुरी में भगवान श्री गणेश का सामुहिक उत्सव की शुरूआत महाराष्ट्र समाज नें ही की थी। कार्यक्रम में बोलते हुए वक्ता दिलीप शिधोरे नें कहा कि उन्हें उनके पिताजी एवं अन्य बुजुर्गों नें बताया कि शिवपुरी में महाराष्ट्रीयन समाज द्वारा सर्वप्रथम 1969 में इसकी स्थापना की थी। प्रारंभ में श्रीगणेश उत्सव माधव चौक स्थित श्री हनुमान मंदिर में आयेाजित किया जाता था। जिसमें शहर के विभिन्न समाजों के लोग इस चल समारोह का उत्साह के साथ स्वागत करते थे। इसके कुछ वर्षेां बाद यह कार्यक्रम न्यू ब्लॉक स्थित मध्यदेशीय अग्रवाल धर्मशाला में हुआ। उन्होंनें कहा कि श्रीगणेश का उस समय चल समारोह निकालने के लिए हनुमान मंदिर से भगवान की बग्गी ली जाती थी चूंकि बग्गी में घोडे (अश्व) ना मिल पाने के कारण समाज के बंधु ही इस बग्गी को हाथों के सहारे खींचकर शहर भर में घूमाते थे। उन्होंनें यह भी बताया कि 50 वर्ष पूर्व शहर में श्रीगणेश की मिट्टी की मूर्ति भी नहीं मिला करती थी इस कारण से समाज के डी.के. शिधोरे, सी.एस.कात्रे एवं दर्शनी काका ग्वालियर जाकर मूर्ति बस में सीट पर टिकिट काटकर रखकर लाते थे। श्री शिधोरे नें कहा कि 1981-82 में समाज के बुजुर्गों नें फिजीकल क्षेत्र एक प्लाट खरीदा और उस पर भवन निर्माण की शुरूआत की। इस प्रयास में अनेक लोगों नें बढचढ कर सहयोग किया और उसी मेहनत का फल है कि आज महाराष्ट्र समाज का स्वयं का भवन कार्यालय है। यहाँ पर बाद में 1992 में माधवराव बेलसरे के प्रयास से गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करवाई गई तभी से इस भवन में मंदिर का रूप ले लिया। उन्होंनें इस यात्रा के अनेक पडावों का भी विस्तार से उल्लेख किया। लोकपाल श्रीमती शोभा चितले नें कहा कि उन्होंनें समाज के विस्तार के लिये लोगों से दो-दो रूपये का अंशदान लिया उसी का नतीजा का है कि उसी पैसे से बने इस भवन की छाया में आज हम लोग यह भव्य कार्यक्रम आयेाजित कर रहे हैं। 

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