क्षमावाणी पर्व पर कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का हुआ आयोजनशिवपुरी- 'खा गई थी निगाह धोखा फिर देखना कुछ था उसने देखा कुछÓ
उसकी कुछ ढूंढती सी आंखों में जल रहा था चराग़ जैसा कुछ।।
उक्त पंक्तियों को प्रस्तुत किया स्वामी राजेन्द्र जैन ने जो स्थानीय निज निवास पर क्षमावाणी पर्व पर आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरे के आयोजन के माध्यम से अपनी भावनाऐं प्रकट कर रहे थे। क्षमावाणी पर्व के इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में आईटीबीपी संस्थान के डीआईजी आर.के.शाह मौजूद रहे जिन्होंने क्षमा शब्द की व्याख्या को विभिन्न वक्तव्यों, उदाहरणों के साथ साझा किए और अपने साथ सभी कवियों व उपस्थितजनों को उसमें शामिल करते हुए अपनी भावनाऐं व्यक्त की। डीआईजी श्री शाह ने कहा कि क्षमा शब्द तो व्यापक है मनुष्य को स्वयं से क्षमा मांगनी चाहिए जो कि वह नहीं मांगता, लेकिन हम अपने किए गए किसी अपराध अथवा निरापराध को भी क्षमा के माध्यम से फलीभूत बना सकते है इसलिए क्षमा तो व्यापक शब्द है इसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। क्षमावाणी का यह पर्व आयोजन के रूप में कर राजेन्द्र जैन राजमाया परिवार ने अनूठा कार्य किया है जिसमें कवि सम्मेलन और मुशायरे के द्वारा जन-जन को क्षमा का संदेश प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपस्थितजनों द्वारा डीआईजी श्री शाह का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। इस अवसर पर चंद्रसेन जैन सहित अन्य कवि एवं मुशायरे बयां करने वाले शायर मौजूद रहे जिनमें डॉ.एच.पी.जैन, सुकुन शिवपुरी, विनय प्रकाश जैन नीरव, दिनेश वशिष्ठ, अरूण अपेक्षित, राजेश गोयल रजत, पवन जैन पीएस रेसीडेंसी, राम पंडित, गोपालजी स्वर संगम, महेन्द्र जैन, संजीव बांझल, महेन्द्र रावत, जय कुमार जैन, राजेश विरमानी, रजनी नामदेव, श्रीप्रकाश शर्मा आदि सहित अन्य कविकार एवं शायर मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन आदित्य शिवपुरी ने जबकि आभार प्रदर्शन राजेन्द्र जैन राजमाया परिवार द्वारा व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम क्षमावाणी कार्यक्रम उसके उपरांत कविता गोष्टि हुई, स्नेहभोज उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस अवसरपर कवि डॉ.एच.पी.जैन ने अपने अंदाज में प्रकृति का सुंदर वर्णन साझा करते हुए कहा कि-
पर्वतों के शिखर को छूती हुई धूप उतरी है हमारे द्वार पर।।
कविकार अरुण अपेक्षित द्वारा क्षमावाणी के अवसर पर क्षमा याचना करती हुई सुंदर कविता प्रस्तुत की। राम पंडित द्वारा हास्य व्यंग की रचनाएं प्रस्तुत की।
राजेश गोयल रजत ने क्षमावाणी पर्व पर अपना काव्य पाठ करते हुए कहा कि-
हमने तो अपना जीवन इतना आसान कर लिया है ...
कि किसी से माफी मांग ली है और किसी को माफ कर दिया है।।
कवि दिनेश वशिष्ठ ने नदी सागर धूप को प्रतीक बनाकर अपनी रचना में संदेश दिया कि
बेशक बड़े बनो किंतु अपनी सीमाओं में रहो। इस दौरान संजीव बांझल ने क्षमावाणी पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला।
उसकी कुछ ढूंढती सी आंखों में जल रहा था चराग़ जैसा कुछ।।
उक्त पंक्तियों को प्रस्तुत किया स्वामी राजेन्द्र जैन ने जो स्थानीय निज निवास पर क्षमावाणी पर्व पर आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरे के आयोजन के माध्यम से अपनी भावनाऐं प्रकट कर रहे थे। क्षमावाणी पर्व के इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में आईटीबीपी संस्थान के डीआईजी आर.के.शाह मौजूद रहे जिन्होंने क्षमा शब्द की व्याख्या को विभिन्न वक्तव्यों, उदाहरणों के साथ साझा किए और अपने साथ सभी कवियों व उपस्थितजनों को उसमें शामिल करते हुए अपनी भावनाऐं व्यक्त की। डीआईजी श्री शाह ने कहा कि क्षमा शब्द तो व्यापक है मनुष्य को स्वयं से क्षमा मांगनी चाहिए जो कि वह नहीं मांगता, लेकिन हम अपने किए गए किसी अपराध अथवा निरापराध को भी क्षमा के माध्यम से फलीभूत बना सकते है इसलिए क्षमा तो व्यापक शब्द है इसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। क्षमावाणी का यह पर्व आयोजन के रूप में कर राजेन्द्र जैन राजमाया परिवार ने अनूठा कार्य किया है जिसमें कवि सम्मेलन और मुशायरे के द्वारा जन-जन को क्षमा का संदेश प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपस्थितजनों द्वारा डीआईजी श्री शाह का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। इस अवसर पर चंद्रसेन जैन सहित अन्य कवि एवं मुशायरे बयां करने वाले शायर मौजूद रहे जिनमें डॉ.एच.पी.जैन, सुकुन शिवपुरी, विनय प्रकाश जैन नीरव, दिनेश वशिष्ठ, अरूण अपेक्षित, राजेश गोयल रजत, पवन जैन पीएस रेसीडेंसी, राम पंडित, गोपालजी स्वर संगम, महेन्द्र जैन, संजीव बांझल, महेन्द्र रावत, जय कुमार जैन, राजेश विरमानी, रजनी नामदेव, श्रीप्रकाश शर्मा आदि सहित अन्य कविकार एवं शायर मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन आदित्य शिवपुरी ने जबकि आभार प्रदर्शन राजेन्द्र जैन राजमाया परिवार द्वारा व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम क्षमावाणी कार्यक्रम उसके उपरांत कविता गोष्टि हुई, स्नेहभोज उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस अवसरपर कवि डॉ.एच.पी.जैन ने अपने अंदाज में प्रकृति का सुंदर वर्णन साझा करते हुए कहा कि-
पर्वतों के शिखर को छूती हुई धूप उतरी है हमारे द्वार पर।।
कविकार अरुण अपेक्षित द्वारा क्षमावाणी के अवसर पर क्षमा याचना करती हुई सुंदर कविता प्रस्तुत की। राम पंडित द्वारा हास्य व्यंग की रचनाएं प्रस्तुत की।
राजेश गोयल रजत ने क्षमावाणी पर्व पर अपना काव्य पाठ करते हुए कहा कि-
हमने तो अपना जीवन इतना आसान कर लिया है ...
कि किसी से माफी मांग ली है और किसी को माफ कर दिया है।।
कवि दिनेश वशिष्ठ ने नदी सागर धूप को प्रतीक बनाकर अपनी रचना में संदेश दिया कि
बेशक बड़े बनो किंतु अपनी सीमाओं में रहो। इस दौरान संजीव बांझल ने क्षमावाणी पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला।
No comments:
Post a Comment