स्व.जगदीश शर्मा की प्रथम पुण्यतिथि पर कवि सम्मेलन आयोजितशिवपुरी- कवि को कविताओं में बांधना बड़ा मुश्किल काम है उसकी ऊर्जा तो इससे कहीं अधिक है लेकिन स्व.जगदीश शर्मा 'दर्दÓ ने अपने जीवन में हमेशा कविताओं और गजलों का सार छुपाकर रखा और आज उनकी ढेरों कविताऐं उनके निधन पश्चात भी हमारे सामने है जहां अनेकों पंजीबद्ध कविताऐं, गजलें स्व. दर्द के श्रृंगार को प्रकट करती है, पूज्य जगदीश शर्मा की प्रथम पुण्यतिथि पर मुझे यहां आने का गौरव प्राप्त होगा, शायद यह मैंने भी नहीं सोचा था, लेकिन आज उनकी पुण्यतिथि परिजनों द्वारा आयोजित की गई जो वाकई एक कवि को उसका सार देने के समान है पुत्र हेमंत शर्मा ने परिजनों के साथ मिलकर पिता के पदचिह्नों पर चलने का यह मार्मिक कार्य किया है जो वाकई प्रशंसनीय है। उक्त उद्गार प्रकट किए जयपुर से शिवपुरी आए कवि हरिबल्लभ श्रीवास्तव ने जो स्थानीय इंदिरा नगर स्थित स्व.जगदीश शर्मा 'दर्दÓ के निवास पर प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन कार्यक्रम को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। इस दौरान कार्यक्रम की अध्यक्षता आफताब अहमद आलम ने की व विशिष्ट अतिथि इशरत ग्वालियरी रहे। कार्यक्रम में दूर-दराज के व स्थानीय कविगण इस पुण्यतिथि पर आयोजित कवि सम्मेलन में शामिल हुए। कवि सम्मेलन का संचालन आदित्य शिवपुरी ने किया जबकि इनमें कवि पाठ करने वाले कवियों में रफीक इशरत ग्वालियरी, याकूब साबिर, कन्हैया आदित्य शिवपुरी, डॉ.मुकेश अनुरागी, भगवान सिंह यादव, रामकृष्ण मौर्य मयंक, आशुतोष शर्मा ओज, राधेश्याम सोनी, डॉ.संजय शाक्य, राकेश कुमार सिंह, शरद गोस्वामी, सुकुन शिवपुरी, दिनेश वशिष्ठ, सत्तार शिवपुरी, साजिद अली एवं अजय जैन अविराम आदि कविगण शामिल हुए।
इन कवियों ने किया पाठकवि अविराम जैन ने कुछ इस तरह स्व.जगदीश शर्मा दर्द को अपने पुत्र द्वारा पुण्यतिथि पर कवि सम्मेलन आयोजन करने पर अपनी श्रद्धांजलि दी-
सोच सुत सदा रहे, बन के बेजुबांॅ कहे,
बेटों की वसीयतों में, बाप ही बटा रहे, जगत जिन्हें पिता कहे।।
डॉ.मुकेश अनुरागी ने स्व.जगदी दर्द को कुछ इस तरह बयां किया-
कवि रोज आंखों में नये स्वप्न पाल लेता हॅंू
जब भी दुविधा में हॅू, सिक्का उछाल लेता हॅंू।
जिंदगी में ना कभी धन सम्हाल पाया मैं,
हर एक हाल में ये दिल सम्हाल लेता हॅूं।।
कवि डॉ.अनुरागी ने समय परिवर्तन को लेकर पिता की विरासत को संभालते हुए कवि पाठ
चार मिसरे हाजिर करता हॅू, समात फरमाये है समय कितना बेढंगा भाईयों के देश में
घर की बातों पर है दंगा, भाईयों के देश में
पहले इठलाती हुई सी घूमती थी हर जगह,
किन्तु अब डरती है गंगा भाईयों के देश में...।।
कवि अजय जैन अविराम ने अपना दूसरा काव्य पाठ करते हुए संवेदनाओं पर प्रकाश डाला और कहा-
जिसका मरा बस वही रो रहा है, बेखबर नशा कर जहां सो रहा है।
मुझे क्या जरूरत मेरा कौन है वो, यही भाव अब तो कहर दे रहा है,
संवेदनाओं की बस यूं मौत होना, हर एक जहन में जहर बो रहा है...।।
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